अमेरिका का साथ

अमेरिकी सीनेट में लाए गए एक प्रस्ताव के मुताबिक, मैकमोहन लाइन ही चीन और भारत के अरुणाचल प्रदेश के बीच की अंतरराष्ट्रीय सीमा है। यानी अमेरिका ने साफ तौर पर रेखांकित किया है कि उसकी नजर में अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है। हालांकि इसमें कोई नई बात नहीं है। भारत शुरू से यह कहता रहा है। मगर अमेरिका की ओर से यह बात ऐसे समय कही गई है, जब ताकत के जोर पर सीमा विस्तार की चीनी कोशिशें अधिकाधिक मुखर होती जा रही हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने न केवल इस बात पर गौर किया है बल्कि उसकी इस प्रवृत्ति पर प्रभावी रोक लगाने के प्रयास भी लगातार किए जा रहे हैं। अमेरिकी सीनेट में लाए गए इस प्रस्ताव को भी इन्हीं प्रयासों के एक हिस्से के रूप में देखा जा रहा है। प्रस्ताव में इस बात का जिक्र है कि कैसे अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत के हिस्से के रूप में दिखाने के लिए चीन की ओर से नए हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।

इनमें लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) के इर्दगिर्द यथास्थिति को बदलने के लिए ताकत का इस्तेमाल करना, अरुणाचल प्रदेश के इलाकों के मंदारिन नाम वाले मैप प्रकाशित करना, भूटान में चीनी क्षेत्र के विस्तार का दावा करना और सीमावर्ती क्षेत्रों के विवादित इलाकों में गांव बसाना जैसे कदम शामिल हैं। इन कदमों के साथ साउथ चाइना सी और इंडो पैसिफिक क्षेत्र में भी चीन की आक्रामकता बढ़ रही है।

ऐसे में स्वाभाविक ही भारत और अमेरिका सहित तमाम देशों ने नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर अमल सुनिश्चित करने की दिशा में कदम उठाने शुरू किए। सीनेट के इस प्रस्ताव में भारत की ओर से इस सिलसिले में उठाए गए कदमों का न सिर्फ उल्लेख किया गया है बल्कि इनके प्रति अमेरिका का समर्थन भी दोहराया गया है। यह मौजूदा नीतियों में किसी बदलाव का नहीं बल्कि उसे और मजबूत बनाने का संकेत है। इसकी जरूरत संभवत: इसलिए महसूस की गई क्योंकि अब तक के संकेतों को चीन गंभीरता से लेता नहीं दिख रहा।

अमेरिका और पश्चिमी देशों की नाखुशी के बावजूद उसने रूस के साथ नजदीकियां और बढ़ाने का संकेत दिया है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के तीसरा कार्यकाल हासिल करने के अगले दिन पेइचिंग में ही ईरान और सऊदी अरब के बीच राजनयिक संबंध बहाल किए जाने की घोषणा कराकर चीन ने संकेत दिया कि वह अपना रुतबा लगातार बढ़ा रहा है।

ऐसे में स्वाभाविक ही अमेरिकी नीति-निर्माताओं को चीन की घेराबंदी और तेज करने की जरूरत महसूस हो रही होगी। बहरहाल, जहां तक भारत का सवाल है तो यह एक पॉजिटिव कदम जरूर है, लेकिन उसे अपने ठोस दीर्घकालिक हितों पर आधारित स्वतंत्र नीति पर चलना जारी रखना होगा।

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