आज का शब्द: नवेला और सुदर्शन प्रियदर्शिनी की कविता- वह शिद्दत के बाद मिली हुई थोड़ी- सी रहमत

इस सागर की
तरह भरे हुए
पर ठहरे हुए
जीवन
जिस में छोटी-छोटी
मछलियों का
क्रिया-कलाप नहीं
जिस में चांदनी रात में
अनबिछी खाट पर
पढ़े हुए चांद को
साथ-साथ ताकने का
सुख नहीं
जिस में छोटी-छोटी
बातों का नहीं
बड़ी- बड़ी प्रलयों का
अहसास भरा हो
ऐसा सुख अन्दर कहीं
गहरे अभावों से
भर देता है …

धीरे-धीरे

स्वयं फल को

पकते देख कर

जीवन के आगे

बढ़ने का सुख

इन छलांगों के

सुख से

कहीं बड़ा लगता है

आज फिर न जाने क्यों

उन धूल-धूसरित

अपने से चेहरों में

खो जाने

का मन करता है।

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