इस सागर की
तरह भरे हुए
पर ठहरे हुए
जीवन
जिस में छोटी-छोटी
मछलियों का
क्रिया-कलाप नहीं
जिस में चांदनी रात में
अनबिछी खाट पर
पढ़े हुए चांद को
साथ-साथ ताकने का
सुख नहीं
जिस में छोटी-छोटी
बातों का नहीं
बड़ी- बड़ी प्रलयों का
अहसास भरा हो
ऐसा सुख अन्दर कहीं
गहरे अभावों से
भर देता है …
तरह भरे हुए
पर ठहरे हुए
जीवन
जिस में छोटी-छोटी
मछलियों का
क्रिया-कलाप नहीं
जिस में चांदनी रात में
अनबिछी खाट पर
पढ़े हुए चांद को
साथ-साथ ताकने का
सुख नहीं
जिस में छोटी-छोटी
बातों का नहीं
बड़ी- बड़ी प्रलयों का
अहसास भरा हो
ऐसा सुख अन्दर कहीं
गहरे अभावों से
भर देता है …
धीरे-धीरे
स्वयं फल को
पकते देख कर
जीवन के आगे
बढ़ने का सुख
इन छलांगों के
सुख से
कहीं बड़ा लगता है
आज फिर न जाने क्यों
उन धूल-धूसरित
अपने से चेहरों में
खो जाने
का मन करता है।