इंसानी मल से खाना बनाता है ये कपल! पेड़ पर बना लिया अनोखा घर, पर्यावरण को बचाने का उठाया जिम्मा

पर्यावरण की रक्षा करना इंसान के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना अपनी और अपने नजदीकी लोगों की करना. हमें लगता है कि हम सिर्फ अपने घर को साफ रखें क्योंकि हमारा सीधा सरोकार उसी से है, पर ये सोच पूरी तरह गलत है. अगर हम पर्यावरण (Enviromental friendly toilet) की रक्षा नहीं करेंगे, तो हमारा ही अस्तित्व खत्म हो जाएगा. इस बात को ध्यान में रखते हुए एक कपल ने बेहद अनोखा कदम (Couple cook food with human faeces) उठाया है जिसको जानकर आप उनकी सराहना जरूर करेंगे.

डेली स्टार न्यूज वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार 34 साल के जेनिफर और क्रिस्टफर पिलायो (Jennifer and Christopher Pelayo) ने नॉर्थ कैरोलाइना (North Carolina, USA) के पश्चिमी भाग में एक 1870 के वक्त के फार्म हाउस को खरीदा और उन्होंने खुद ही उसे रेनोवेट किया. उन्होंने इस फार्म हाउस में एक ट्री हाउस का भी निर्माण किया और सबसे महत्वपूर्ण ये कि उनका फार्म पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है. फ्लावर टाउन चार्म नाम के इस फार्म हाउस के बारे में उन्होंने बताया कि वो ट्री हाउस को मजबूत और पर्फेक्ट बनाना चाहते थे. पर इसमें सबसे बड़ी समस्या टॉयलेट की थी.

ये टॉयलेट पर्यावरण के अनुकूल बताया जा रहा है. (फोटो: Jennifer and Christopher Pelayom / flowertowncharm)

टॉयलेट से निकले मल को करते हैं जमा
काफी रिसर्च के बाद कपल ने ऐसे टॉयलेट को बनाने के बारे में सोचा जो उनके कचरे को ऊर्जा में बदल दे. उन्होंने डेली स्टार से बात करते हुए कहा कि वो टॉयलेट को साफ सुधरा, गेस्ट फ्रेंडली और सबसे जरूरी पर्यवारण के अनुकूल बनाना चाहते थे. उन्होंने पहले तो कंपोस्ट टॉयलेट के बारे में सोचा पर वो गेस्ट फ्रेंडली नहीं होता है. जब रिसर्च करने लगे तो उन्हें होम बायो गैस सिस्टम के बारे में पता चला.

घर में इस्तेमाल होती है गैस
कपल ने बताया कि आम टॉयलेट से निकला मल सेप्टिक टैंक या सीवर में जाता है, पर इस टॉयलेट से निकला मल एक बड़े और काले रंग के ब्लाडर बैग में जाता है. ये मल को तेजी से प्रोसेस करता है और मीथेन गैस पैदा करता है. ये गैस घर में खाना पकाने, घर को गर्म करने और पानी गर्म रखने में काम आती है. वहीं जो सूखा पदार्थ बचता है, वो खाद के तौर पर उनके फार्म में इस्तेमाल होता है. उन्होंने कहा कि ये पर्यवारण संरक्षण में काफी मददगार है. उन्होंने बताया कि उन्हें ये सिस्टम लगवाने में लगभग 2 लाख रुपये का खर्च आया था. इस प्रकार उनकी बिजली का खर्च, सेप्टिक टैंक लगवाने का खर्च और सीवर बिल देने का खर्च बच गया.

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