‘उन्हें खुलकर प्यार जताने की इजाजत क्यों नहीं?’
हमें काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला लेकिन अनजान लोगों ने होमोफोबिक कमेंट्स भी खूब किए। मुझे हैरानी होती है कि एक समाज के रूप में हमने सेम सेक्स मैरिज और रिश्तों को इतना बड़ा ‘टैबू’ टॉपिक बना दिया है। मुझे आज भी वो दिन याद है जब बच्चों ने मुझसे पूछा था कि उन्हें पब्लिक लाइफ में उसी तरह प्यार जताने की इजाजत क्यों नहीं होनी चाहिए जैसे मुझे और मेरे पति को है। मुझे नहीं पता था क्या कहूं। आज भी नहीं जानती। मैं नहीं समझ पाती कि क्यों लोगों ने भारत में सेम सेक्स मैरिज के लीगलाइजेशन पर दिमाग को बंद कर रखा है।
कुछ को लगता है कि इस कदम से जेंडर रोल्स बदल जाएंगे और पारंपरिक परिवार के ढांचे को चोट पहुंचेगी। लेकिन ‘ट्रेडिशनल फैमिली’ है क्या? हमने अपने चारों तरफ हर तरह के परिवार देखे हैं न? वैसे परिवार जहां एक पैरंट नहीं होता, वैसा परिवार जहां बच्चे दादा-दादी या नाना-नानी के पास पलते हैं? इसीलिए मैं अक्सर कहती हूं कि हमें मदर्स डे और फादर्स डे मनाना छोड़कर केवल ‘केयरगिवर्स डे’ मनाना चाहिए।
‘पब्लिक में स्वीकार्यता न मिलना अमानवीय’
एक टीचर के रूप में, मेरा हमेशा से मानना रहा है कि जन्म के कुछ वक्त बाद ही लोगों पर समाज जेंडर रोल्स लादना शुरू करता है। दो साल पहले जब रित ने कहा कि वे अपनी सेक्सुएलिटी एक्सप्लोर कर रहे हैं, तो मैं हैरान नहीं हुई। उस वक्त तक हमने ‘Call Me by Your Name’ जैसी फिल्में देख रखी थीं और दीपा मेहता जैसे फिल्ममेकर्स अपनी फिल्मों में ऐसे विषयों पर बात कर चुके थे। मेरे पति को जरूर रित के बताने से हैरानी हुई। जब रित ने हमें स्वीकार की एक ऑनलाइन वर्कशॉप दिखाई तो वह स्क्रीन की तरफ देखने को भी तैयार नहीं थे। हमारे ही जैसे सफर पर चल रहे लोगों के अनुभव सुनना शानदार था।
एक हिस्सा है जिसे लगता है कि सेम सेक्स मैरिज के लीगलाइजेशन का मसला ‘अर्बन एलीटिस्ट’ मानसिकता का प्रतीक है लेकिन सारे क्वीर लोग शहरी या एलीट परिवारों से नहीं हैं। ग्रामीण इलाकों में भी कई कम्युनिटी मेंबर्स हैं। वैवाहिक समानता के खिलाफ सभी तर्कों के पीछे वह सोच है कि ‘होमोसेक्सुएलिटी अपराध नहीं रही, क्या इतना काफी नहीं?’ जिसका दूसरा मतलब यह है कि ‘आप बंद दरवाजों के पीछे कुछ भी करें, हम पब्लिक में आपको स्वीकार नहीं करेंगे।’ यह अमानवीय है।
आखिर में बात चॉइस की होनी चाहिए। चाहे उनका नाम हो या वे किससे शादी करेंगे, हर व्यक्ति को चुनने का अधिकार होना चाहिए।
जैसा शर्मिला गणेशन राम से बताया (हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया के सौजन्य से) अंग्रेजी में मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें