
एंटी
बैक्टीरिया
और
एंटीफंगल
है
पेंट
राजधानी
रायपुर
के
जरवाय
गौठान,
दुर्ग
जिले
के
गांव
लिटिया
और
कांकेर
के
सराधुननवागांव
में
गोबर
से
प्राकृतिक
पेंट
बनाने
का
का
शुरू
किया
गया
है।
पेंट
निर्माण
में
अमूमन
मल्टी
नेशनल
कंपनियां
ही
काबिज
थीं
लेकिन
अब
ग्रामीण
महिलाएं
भी
इस
क्षेत्र
में
मजबूती
से
कदम
रख
चुकी
हैं।
गोबर
से
बनने
वाला
प्राकृतिक
पेंट
बिल्कुल
मल्टी
नेशनल
कंपनियों
के
द्वारा
तैयार
किए
गए
पेंट
जैसा
है।
इसकी
गुणवत्ता
उच्च
स्तरीय
है,
यह
पेंट
एंटी
बैक्टीरिया
और
एंटीफंगल
होता
है।

प्रीमियम
क्वालिटी
के
पेंट
की
तुलना
में
30
से
40
फीसदी
कम
कीमत
गोबर
से
पेंट
और
वर्मी
कम्पोस्ट
तैयार
कर
महिलाएं
महात्मा
गांधी
जी
के
आत्मनिर्भर
गांव
की
कल्पना
को
साकार
कर
रही
हैं।
इससे
गांव
के
लोगों
को
रोजगार
के
साथ
ही
उनकी
तरक्की
के
लिए
नए-नए
अवसरों
का
निर्माण
हो
रहा
है।
जरवाय
गौठान
में
डिस्टेंपर,
इमल्शन
पेंट
के
साथ
ही
पुट्टी
का
भी
निर्माण
हो
रहा
है।
इसकी
बिक्री
राजधानी
रायपुर
के
सीजी
मार्ट
में
की
जा
रही
है।
इसे
जल्द
ही
विभिन्न
ऑनलाइन
प्लेटफार्म
पर
भी
उपलब्ध
कराने
की
योजना
है।
यह
पेंट
मल्टी
नेशनल
कंपनी
के
पेंट
की
तुलना
में
30
से
40
प्रतिशत
सस्ता
होने
के
साथ
ही
यह
पर्यावरण
के
अनुकूल
भी
है।
गोबर
से
बने
इस
पेंट
की
कीमत
बाजार
में
उपलब्ध
प्रीमियम
क्वालिटी
के
पेंट
की
तुलना
में
30
से
40
फीसदी
कम
है।
इमल्शन
पेंट
की
कीमत
225
रूपए
प्रति
लीटर
है।
यह
1,2,4
और
10
लीटर
के
पैकेज
में
तैयार
किया
जा
रहा
है।
साथ
ही
यह
बड़ी
कम्पनियों
के
पेंट
की
तरह
करीब
4
हजार
रंगों
में
भी
उपलब्ध
है।
साथ
ही
पुट्टी
डिस्टेंपर
भी
तैयार
किया
जा
रहा
है।

राष्ट्रीय
स्तर
की
संस्था
से
प्रमाणित
एवं
गुणवत्तापूर्ण
यह
पेंट
भारत
सरकार
की
संस्था
राष्ट्रीय
प्रशिक्षण
शाला
के
द्वारा
प्रमाणित
भी
किया
गया
है।
साथ
ही
इसके
इसके
विभिन्न
प्रकार
के
गुण
है
यह
एन्टी
बैक्टीरिया,
एंटीफंगल,
इको-फ्रेंडली,
नॉन
टॉक्सिक
है।
यह
भी
वैज्ञानिक
संस्थान
द्वारा
प्रमाणित
है।
इस
प्राकृतिक
पेंट
में
हैवी
मटेरियल
का
उपयोग
नही
किया
गया
है
और
यह
नेचुरल
थर्मल
इन्सुलेटर
है
अर्थात्
इसमें
चार
से
पांच
डिग्री
तापमान
करने
की
क्षमता
भी
है।

रायपुर,
दुर्ग
और
कांकेर
के
यूनिट
में
निर्माण
शुरू
यह
राजधानी
के
जरवाय
गौठान
गोवर्धन
क्षेत्र
स्तरीय
महिला
स्व
सहायता
समूह
द्वारा
लक्ष्मी
ऑर्गेनिक
संस्थान
के
सहयोग
से
बनाई
जा
रही
है।
इस
समय
इस
गौठान
में
स्थापित
यूनिट
द्वारा
प्रतिदिन
2
हजार
लीटर
इमल्शन
पेंट
बनाने
की
क्षमता
है।
जिसे
भविष्य
में
मांग
अनुरूप
5
हजार
लीटर
तक
वृद्धि
की
जा
रही
है।
यहां
पर
पुट्टी
और
डिस्टेंपर
भी
बनाई
जा
रही
है।
इस
पेंट
से
राजधानी
के
नगर
निगम
मुख्यालय
की
इमारत
जोन
क्रमांक
8
की
इमारत
में
पोताई
की
गई
है।
वहीं
दुर्ग
जिले
के
ग्राम
लिटिया
की
ग्रामीण
बहनें
गांव
में
ही
डिस्टेंपर
निर्माण
कर
रही
हैं।
डिस्टेंपर
यूनिट
की
निर्माण
क्षमता
हर
दिन
हजार
लीटर
तक
की
है।
उन्होंने
इसका
विक्रय
भी
आरंभ
कर
दिया
है।
कांकेर
जिले
के
चारामा
विकासखण्ड
के
ग्राम
सराधुननवागांव
के
गौठान
में
सागर
महिला
क्लस्टर
समूह
द्वारा
गोबर
से
पेंट
का
निर्माण
किया
जा
रहा
है,
जिससे
महिला
स्व-सहायता
समूह
को
आमदनी
भी
हुई
है।
इस
गौठान
में
अब
तक
1400
लीटर
पेंट
का
निर्माण
किया
जाकर
373
लीटर
पेंट
का
विक्रय
भी
किया
जा
चुका
है,
जिससे
स्व-सहायता
समूह
की
महिलाओं
को
75
हजार
525
रूपये
की
आमदनी
हुई
है।
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Chhattisgarh
में
Bhupesh
Govt
गोबर
के
बाद
अब
गोमूत्र
भी
खरीदेगी
सरकार
|
वनइंडिया
हिंदी
|
*News

गोबर
से
पेंट
बनाने
की
प्रक्रिया
विशेषज्ञों
द्वारा
दी
गई
जानकारी
के
अनुसार
यह
विधि
दो
दिन
पुराने
गोबर
से
होती
है
सबसे
पहले
गोबर
को
एक
मिक्सिंग
टैंक
में
डाला
जाता
है
और
उसमें
बराबर
मात्रा
में
पानी
डाला
जाता
है
पानी
डालने
के
बाद
मिक्सिंग
टैंक
में
एजिटेटर
लगा
होता
है
यह
एजिटेटर
तब
तक
चलाते
हैं
जब
तक
गाय
का
गोबर
बिल्कुल
पेस्ट
के
समान
ना
हो
जाए।
इस
पेस्ट
को
पंप
के
माध्यम
से
आगे
टीडीआर
मशीन
में
भेजा
जाता
है,
जहां
पर
यह
बिल्कुल
बारीक
पीसकर
आगे
ब्लीचिंग
टैंक
में
भेजा
जाता
है।
यहां
इसे
100
डिग्री
तक
गर्म
किया
जाता
है
और
इसमें
हाइड्रोजन
पराक्साइड
एवं
कास्टिक
सोडा
मिलाया
जाता
है
जिससे
गोबर
का
रंग
बदल
जाता
है
एवं
उसकी
सारी
अशुद्धियां
दूर
हो
जाती
हैं।
गोबर
से
मिले
उक्त
स्लरी
को
पेंट
बनाने
के
अगले
चरण
में
बेस
की
तरह
इस्तेमाल
किया
जाता
है,
बाद
इसके
बाद
इसे
अन्य
सामग्रियों
पीगमेंट,
स्क्सटेंडर,
ब्लाइंडर,
फिलर
के
साथ
मिलाकर
हाई
स्पीड
डिस
प्रेशर
मशीन
में
3
से
4
घंटे
तक
अलग
अलग
आरपीएम
में
मिलाया
जाता
है
इसके
पश्चात
प्राकृतिक
पेंट
बनकर
तैयार
हो
जाता
है।
यह
अच्छी
पैकेजिंग
की
पश्चात
बाजार
में
बिक्री
के
लिए
उपलब्ध
हो
जाती
है।
उल्लेखनीय
है
कि
मुख्यमंत्री
श्री
भूपेश
बघेल
की
मंशा
के
अनुरूप
राज्य
के
75
गौठानों
में
गोबर
से
प्राकृतिक
पेंट
एवं
पुट्टी
निर्माण
की
इकाईयां
तेजी
से
स्थापित
की
जा
रही
है।
इन
इकाईयों
के
पूर्ण
होने
पर
प्रतिदिन
50
लीटर
तथा
साल
भर
में
37
लाख
50
लीटर
प्राकृतिक
पेंट
का
उत्पादन
होगा।