जब पहली बार कॉलेज गईं देश के इस गांव की लड़कियां, जोश-जुनून और जज्बे की पूरी कहानी

हरियाणा के करनाल जिले में आजादी के बाद से अब कहीं जाकर लड़कियां कॉलेज जा पाई हैं। करनाल जिले का देवीपुर गांव दिल्ली से महज 100 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहां के लोग अब तक लड़कियों को गांव के स्कूल में पढ़ाई के बाद कॉलेज में एडमिशन नहीं लेने देते थे।

 

Devipur village Girls first time went to college
आजादी के बार पहली बार कॉलेग गईं देवीपुर गांव की लड़कियां

हाइलाइट्स

  • आजादी के बाद से पहली बार कॉलेज गईं देवीपुर की लड़कियां
  • दिल्ली से महज 100 किलोमीटर दूर है करनाल जिले का देवीपुर
  • बेटियों ने पढ़ाई के लिए गांव वालों से मोर्चा लेकर पूरा किया सपना
चंडीगढ़/ करनाल: आजादी को 75 साल बीत चुके हैं और देश इसका अमृत महोत्सव मना रहा है। लेकिन इस बीच हरियाणा के करनाल जिले से हैरान कर देने वाली हकीकत सामने आई है। जहां के गांव की लड़कियां अब कहीं जाकर कॉलेज का रास्ता तय कर पाई हैं। यह तस्वीर ऐसे इलाके की है जो कि देश की राजधानी दिल्ली से महज 100 किलोमीटर ही दूर है। वो तो सलाम है देवीपुर ग्राम पंचायत की बेटियों को जिन्होंने अपने हक की इस लड़ाई का दुर्गम रास्ता खुद तय किया और ठाना कि हर हाल में हमें पढ़ाई करनी ही है। बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट के मुताबिक गांव की इन बेटियों ने परिवार, गांव और सरकारी तंत्र से लेकर हर मोर्चे पर लोहा लिया और जीत हासिल की।

पढ़ाई के लिए जिद पर अड़ गई नैना

देवीपुर ग्राम पंचायत की बेटी नैना के हौंसले को हर कोई सलाम कर रहा है और आखिर करे भी क्यों न? नैना ने हौंसला ही गजब का दिखाया। जिसके चलते आज देवीपुर गांव की बेटियां स्कूल के बाद कॉलेज का रास्ता तय कर उसकी अहमियत को समझ पा रही हैं। बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट के मुताबिक नैना के पिता ने जब कहा कि नहीं पढ़ाई के लिए कहीं नहीं जाना। तो मन में पढ़ाई करने की ललक को ठान रखी नैना का जवाब था- क्यों नहीं जाऊं? उसने पिता से कह दिया कि जाऊंगी तो जरूर और मुझे जाने दो। अगर मैं कुछ गलत करती मिली तो आप मेरी नाड़ (गर्दन) काट देना’

परिवार ने लगाया शिकंजा, फिर भी ललक ऐसी कि…

देवीपुर गांव में स्कूल की पढ़ाई के बाद लड़कियों को यहां से बाहर कॉलेज में पढ़ने की इजाजत नहीं थी। क्योंकि यहां के लोगों की धारणा थी कि अगर गांव से कॉलेज के लिए लड़की निकली तो इसका मतलब है कि ज्यादा आजादी। जो कि किसी भी सूरत में गांव वालों को मंजूर नहीं था। नैना का सोचना था कि अगर उसने ऐसा कर लिया तो भविष्य में इसका फायदा सिर्फ उसकी दस बहनों को ही नहीं… बल्कि पंचायत में रहने वाली सभी लड़कियों को मिलेगा और सभी पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो पाएंगी। इस हिम्मत के काम में नैना के साथ गांव की चौदह और लड़कियां भी शामिल हुईं और कुछ ऐसा कर दिखाया जो कि गांव के लिए मिसाल माना जा रहा है।

नहीं था कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट, पुल बना तरक्की में रोड़ा

करनाल के गांव देवीपुर से कोई भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट का जुड़ाव नहीं था। जिसके चलते यहां के लोगों को अगर बाहर जाना होता तो पैदल ही रास्ता तय करना पड़ता था। गांव से बाहर कॉलेज को जाने वाले रास्ते में एक पुल पड़ता है। लड़कियों के कॉलेज जाने के रास्ते में यही वह रोड़ा था जिससे कि गांव का हर परिवार बचना चाहता था या कि यूं कहें कि तरक्की के रास्ते में बाधा था। लोगों का मानना था कि गांव में बस नहीं चलती है इसलिए हम लड़कियों को कॉलेज नहीं भेजेंगे। क्योंकि पुल पर आवारा लड़के बैठे होते थे। जोकि लड़कियों से छेड़खानी कर देंगे। हालांकि यह हकीकत थी कि अगर कॉलेज जाना है तो जाहिर तौर पर लड़कियों को चार किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा।

वो एक चिट्ठी जो कर गई काम

नैना की कॉलेज जाने की जिद को देखने के बाद गांव की बाकी लड़कियों में भी पढ़ाई को लेकर जुनून जागा। जिसके बाद सभी लड़कियों ने मिलकर ठाना कि अगर किसी तरह बस एक बार गांव से चल जाए तो हमारी आने-जाने की मुश्किल आसान हो जाएगी। जिसके बाद सभी लड़कियों ने नैना के साथ मिलकर गांव वालों के बीच एक मीटिंग बुलाई। जिसमें लड़कियों ने गांव वालों के सामने पक्ष रखा कि आप लोगों को यही समस्या है न कि बस चल जाए। हम सब मिलकर इसका हल निकालते हैं। फिर क्या था इन लड़कियों ने मिलकर करनाल की चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट जसबीर कौर को मई, 2022 में चिट्ठी लिखी। लड़कियों ने जसबीर कौर से अपनी समस्या का पूरा ब्यौरा बताते हुए गांव में बस चलवाने की मदद मांगी। सामाजिक संस्था ब्रेकथ्रू ने लड़कियों और चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के बीच बड़ा रोल अदा किया। जिसके बाद जसबीर कौर ने अगले दिन ही बस चलवाने का आदेश दे दिया।

ज्योति ने विरोध झेलकर भी निभाया लड़कियों का साथ

देवीपुर गांव की लड़कियों के कॉलेज जाने के मामले में ज्योति के संघर्ष को कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। क्योंकि वो ज्योति ही थी जिसने कि नैना और बाकी लड़कियों की आवाज को चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट मजिस्ट्रेट जसबीर कौर तक पहुंचाने का काम किया। ज्योति दलित समुदाय से आती हैं। जो कि करनाल जिले के गढ़ी खजूर गांव की रहने वाली है। लड़कियों को आगे ले जाने के लिए ज्योति ने गैर सरकारी संगठन वारित्रा फाउंडेशन से रिश्ता जोड़ा और गांव की ‘हरिजन चौपाल’ में एक लर्निंग सेंटर शुरू किया। जिसको लेकर भी उन्हें काफी विरोध झेलना पड़ा था।

अभी लड़ाई और भी है

केवल बस चल जाने भर से देवीपुर गांव की लड़कियों की लड़ाई पूरी नहीं होगी। करनाल की चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट जसबीर कौर ने इस पूरे मामले में अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने कहा कि मैंने गांव वालों से बात की। जिसमें लगा कि वहां के लोगों की सोंच में अभी और सुधार की जरूरत है। इसलिए हमारा प्रयास अभी आगे भी जारी रहेगा। देवीपुर के बुजुर्गों का मानना है कि उनकी लड़कियां अंधेरा होने से पहले घर पहुंच जाएं। दरअसल गांव तक वापसी के लिए एक ही बस है। जिसकी टाइमिंग शाम 6 बजे तक की है। जल्दी घर पहुंचने के चक्कर में लड़कियों को हर दिन कुछ क्लासेज छोड़नी पड़ जाती हैं। देवीपुर पंचायत के सरपंच कृष्ण कुमार ने कहा कि हम तो चाहते हैं कि गांव की लड़कियां और पढ़ें। उन्होंने कहा कि बस की टाइमिंग की समस्या को लेकर हमने प्रशासन से बात करने की कोशिश की है, हालांकि अब तक इसका कोई हल नहीं निकला है।

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