डोकलाम के जरिए भूटान में घुसने की चीन की रणनीति को भारत फेल कर चुका है और मोदी सरकार ने भूटान के साथ संबंधों को और गहरा किया है। भूटान में अभी तक चीन अपना दूतावास तक नहीं खोल पाया है।
International
oi-Abhijat Shekhar Azad

China
on
India-Bhutan
Relation:
भूटान
के
डोकलाम
को
लेकर
भारत
और
चीन
के
बीच
कई
सालों
से
तनाव
रहा
है
और
भारत
ने
कभी
भी
भूटान
में
चीन
को
अपने
पैर
पसारने
नहीं
दिए
हैं।
लेकिन,
चीनी
सरकार
के
मुखपत्र
ग्लोबल
टाइम्स
ने
भारत
की
भूटान
नीति
को
लेकर
जमकर
जहर
उगला
है
और
ग्लोबल
टाइम्स
के
आर्टिकिल
में
भूटान
में
भारत
की
सांस्कृतिक
पकड़
को
वीलेन
बनाकर
प्रोजेक्ट
किया
गया
है,
जिससे
साफ
पता
चलता
है,
कि
भूटान
की
नाकामी
ने
चीन
को
किस
कदर
बौखला
दिया
है।
ग्लोबल
टाइम्स
ने
अपने
संपादकीय
में
आरोप
लगाया
है,
भारत
ने
भूटान
की
राजनीति,
अर्थव्यवस्था
और
यहां
तक
की,
भूटान
के
समाज
पर
भी
कंट्रोल
कर
रखा
है।

भूटान
को
लेकर
ग्लोबल
टाइम्स
का
लेख
ग्लोबल
टाइम्स
ने
लिखा
है,
कि
भारत
और
चीन
के
बीच
हिमालय
के
दक्षिणी
ढलानों
पर
स्थिति
भूटान
के
लंबे
समय
से
तिब्बत
(1959
में
चीन
ने
किया
कब्जा)
के
साथ
घनिष्ठ
राजनीतिक,
आर्थिक,
सांस्कृतिक
और
धार्मिक
संबंध
रहे
हैं।
18वीं
सदी
के
मध्य
और
अंत
में,
ब्रिटेन
ने
भूटान
पर
आक्रमण
करना
शुरू
कर
दिया।
19वीं
शताब्दी
के
अंत
से
20वीं
शताब्दी
की
शुरुआत
तक,
ब्रिटेन
ने
भूटान
को
असमान
संधियों
में
बंधने
को
मजबूर
कर
जिया
और
भूटान
को
ब्रिटेन
के
“संरक्षण”
के
तहत
ला
खड़ा
किया,
जिसने
धीरे-धीरे
चीन
और
भूटान
के
तिब्बत
(जिसे
चीन
Xizang
कहता
है)
के
बीच
अधिपति-जागीरदार
संबंध
को
खत्म
कर
दिया।
ग्लोबल
टाइम्स
ने
लिखा
है,
कि
स्वतंत्रता
के
बाद,
भारत
ने
ब्रिटिश
साम्राज्य
की
औपनिवेशिक
विरासत
को
भूटान
में
आगे
बढ़ाया
और
भूटान
के
साथ
एक
असमान
“विशेष
संबंध”
स्थापित
किया।
ग्लोबल
टाइम्स
ने
अपनी
संपादकीय
में
आरोप
लगाया
है,
कि
भारत
ने
भूटान
के
आंतरिक
मामलों
और
विदेशी
मामलों
में
विभिन्न
तरीकों
से
हस्तक्षेप
करते
हुए
भूटान
की
राष्ट्रीय
रक्षा
और
अर्थव्यवस्था
को
नियंत्रित
कर
लिया
है।

भारत
कैसे
करता
है
भूटान
को
कंट्रोल?
ग्लोबल
टाइम्स
ने
अपने
संपादकीय
में
आरोप
लगाया
है,
कि
भारत
ने
स्पेशल
संबंधों
का
हवाला
देते
हुए
भूटान
को
कंट्रोल
करने
की
कोशिश
की
है।
ग्लोबल
टाइम्स
ने
लिखा
है,
कि
“भारत
और
भूटान
के
बीच
तथाकथित
विशेष
संबंध
भूटान
पर
भारत
के
नियंत्रण
का
राजनीतिक
आधार
है।
यह
ब्रिटिश
साम्राज्य
की
औपनिवेशिक
विरासत
को
आगे
बढ़ाने
और
भारत
की
क्षेत्रीय
आधिपत्य
बनाने
के
विचार
से
उपजा
है,
जिसके
तहत
भारत
ने
कानूनी
आधार
पर
भूटान
के
साथ
असमान
संधियां
की
हैं
और
भूटान
ने
उनपर
हस्ताक्षर
किए
हैं।
यानि,
चीन
ने
आरोप
लगाया
है,
कि
भारत
ने
भूटान
को
कंट्रोल
करने
के
लिए
असमान
संधियां
की
हैं
यानि
भूटान
को
मजबूर
किया
है।
वहीं,
ग्लोबल
टाइम्स
ने
आगे
लिखा
है,
कि
“ब्रिटिश
उपनिवेशवादियों
ने
भूटान
की
राष्ट्रीय
संप्रभुता
को
नष्ट
करना
जारी
रखा।
18वीं
शताब्दी
के
अंत
में,
मध्य
एशिया
और
चीनी
मुख्य
भूमि
के
लिए
व्यापार
मार्गों
को
खोलने
और
हिमालय
की
दक्षिणी
तलहटी
में
चीन
के
प्रभाव
को
कमजोर
करने
के
लिए,
ब्रिटेन
ने
नेपाल,
सिक्किम
और
भूटान
जैसे
राज्यों
में
घुसपैठ
और
आक्रमण
करना
शुरू
कर
दिया।

चीन
ने
दिया
इतिहास
का
हवाला
ग्लोबल
टाइम्स
में
इतिहास
का
हवाला
देकर
लिखा
है,
कि
“1772
में,
एक
ब्रिटिश
अभियान
दल
ने
भूटान-नियंत्रित
कूचबिहार
पर
कब्जा
कर
लिया।
1773
में,
ब्रिटिश
अभियान
दल
ने
भूटान
पर
आक्रमण
किया।
25
अप्रैल,
1774
को
भूटान
ने
ब्रिटिश
ईस्ट
इंडिया
कंपनी
के
साथ
एक
तथाकथित
शांति
संधि
पर
हस्ताक्षर
किए
और
फिर
भूटान
अपनी
1730
किलमोटीर
लंबी
पूर्व
की
सीमाओं
पर
लौटने
के
लिए
सहमत
हो
गया,
जिसके
बाद
अंग्रेजों
ने
भूटान
के
लोगों
को
लकड़ी
काटने
के
अधिकार
दिए।
1826
में,
अंग्रेजों
ने
निचले
असम
पर
कब्जा
कर
लिया
और
ब्रिटेन-भूटान
संबंध
तनावपूर्ण
होने
लगे।
1834
से
1835
तक,
अंग्रेजों
ने
भूटान
पर
आक्रमण
किया
और
भूटान
ने
अपने
क्षेत्र
का
हिस्सा
खो
दिया”।
(नोट-
ग्लोबल
टाइम्स
ने
इतिहास
के
हवाले
से
ये
जानकारी
दी
है,
जिसे
हम
सत्यापित
नहीं
करते
हैं)
चीनी
कम्युनिस्ट
पार्टी
के
मुखपत्र
ने
आगे
लिखा
है,
कि
1841
में,
ब्रिटेन
ने
भूटान
द्वारा
नियंत्रित
एक
चाय
उत्पादक
क्षेत्र
असम
डुआर्स
पर
कब्जा
कर
लिया।
1842
में,
ब्रिटेन
ने
भूटानी-प्रशासित
बंगाल
द्वारों
पर
नियंत्रण
कर
लिया।
1864
से
1865
तक,
ब्रिटेन
ने
दुआर
युद्ध
शुरू
किया,
जिसमें
भूटान
की
हार
हुई
और
उसने
सिंचुला
संधि
पर
हस्ताक्षर
किए।
भूटान
ने
असम
दुर
और
बंगाल
द्वार
के
साथ
साथ
अपने
दक्षिण-पूर्वी
भाग
में
देवनगिरी
के
आसपास
के
83
वर्ग
किलोमीटर
क्षेत्र
को
अंग्रेजो
को
सौंप
दिया।

अंग्रेज-भूटान
पुनाखा
की
संधि
ग्लोबल
टाइम्स
ने
लिखा
है,
कि
ब्रिटिश
भारत
के
उत्तरी
भाग
की
सुरक्षा
सुनिश्चित
करने
के
लिए,
ब्रिटेन
ने
जनवरी
1910
में
भूटान
के
साथ
पुनाखा
की
संधि
पर
हस्ताक्षर
किए।
संधि
के
अनुसार,
ब्रिटेन
ने
भूटान
की
स्वतंत्रता
की
गारंटी
दी,
भूटान
की
शाही
सरकार
को
और
अधिक
सब्सिडी
दी,
और
भूटान
के
विदेशी
संबंधों
को
नियंत्रित
किया।
कैलिफ़ोर्निया
विश्वविद्यालय,
बर्कले
के
लियो
ई.
रोज़
का
हवाला
देते
हुए
चीनी
अखबार
ने
लिखा
है,
कि
इस
संधि
ने
भूटानी
विदेशी
संबंधों
को
एक
अन्य
अधिपति
को
सौंपने
की
प्रथा
शुरू
की।
इस
संधि
ने
भूटानी
स्वतंत्रता
की
भी
पुष्टि
की,
क्योंकि
यह
उन
कुछ
एशियाई
राज्यों
में
से
एक
है,
जिन
पर
किसी
क्षेत्रीय
या
औपनिवेशिक
शक्ति
ने
कभी
विजय
प्राप्त
नहीं
की।

‘भारत
ने
भूटान
के
साथ
बढ़ाया
अंग्रेजों
वाला
संबंध’
चीनी
अखबार
ने
लिखा
है,
कि
भारत
ने
भूटान
के
साथ
अग्रेजी
विरासत
को
ही
आगे
बढ़ाया,
जबकि
भारत
ने
8
अगस्त,
1949
को
भूटान
के
साथ
मित्रता
की
संधि
पर
हस्ताक्षर
किए।
इस
संधि
के
अनुच्छेद
2
में
कहा
गया
है,
“भारत
सरकार
भूटान
के
आंतरिक
प्रशासन
में
कोई
हस्तक्षेप
नहीं
करने
का
वचन
देती
है।
अपनी
ओर
से
भूटान
सरकार
अपने
बाहरी
संबंधों
के
संबंध
में
भारत
सरकार
की
सलाह
से
निर्देशित
होने
के
लिए
सहमत
है।”
ग्लोबल
टाइम्स
ने
लिखा
है,
कि
शिनजियांग
की
परिस्थितियों
की
वजह
से
चीन
के
लिए
भूटान
पर
ध्यान
केन्द्रित
करना
संभव
नहीं
था,
जिससे
भूटान
सरकार
को
गंभीर
नुकसान
हुआ।

‘भूटान
की
इकोनॉमी,
सिक्योरिटी
पर
भारत
का
कंट्रोल’
ग्लोबल
टाइम्स
ने
लिखा
है,
कि
भारत-भूटान
की
संधि
ने
भारत
को
भूटान
पर
कंट्रोल
करने
का
अधिकार
दे
रखा
है
और
तथाकथित
विशेष
संबंध
ने
भारत
को
खुद
को
भूटान
का
“संरक्षक”
मानने
के
लिए
प्रेरित
किया
है।
लिहाजा,
भूटान
की
इकोनॉमी
और
सुरक्षा
पर
भारत
कंट्रोल
करता
है।
भारत
भूटान
की
राष्ट्रीय
रक्षा
और
सैन्य
निर्माण
में
गहराई
से
शामिल
है।
भारत
ने
भूटान
को
चीन
और
भारत
के
बीच
एक
बफर
के
रूप
में
देखा
और
भूटान
को
भारतीय
राज्यों
पश्चिम
बंगाल
और
असम
के
साथ-साथ
चीन
के
शिनजियांग
और
तत्कालीन
पूर्वी
पाकिस्तान
(अब
बांग्लादेश)
की
सीमा
से
सटे
भूटान
के
रणनीतिक
स्थान
के
कारण,
अपनी
राष्ट्रीय
रक्षा
रणनीति
में
शामिल
किया
है।
28
अगस्त,
1959
को,
तत्कालीन
भारतीय
प्रधान
मंत्री
जवाहरलाल
नेहरू
ने
लोकसभा
में
कहा
था,
कि
“भूटान
की
क्षेत्रीय
अखंडता
और
सीमाओं
की
रक्षा
भारत
सरकार
की
जिम्मेदारी
थी।”
चीन
का
दावा
है,
कि
1949
की
संधि
में
ऐसा
कोई
खंड
नहीं
था
और
भारत
ने
एकतरफा
रूप
से
खुद
को
भूटान
का
“संरक्षक”
घोषित
कर
दिया।
नेहरू
ने
नवंबर
1959
में
भारत
की
संसद
में
कहा
था
कि
“भूटान
के
खिलाफ
कोई
भी
आक्रमण
…
भारत
के
खिलाफ
आक्रमण
माना
जाएगा।”
‘भूटान
की
इकोनॉमी
में
भारत
का
है
दखल’
चीनी
अखबार
ने
लिखा
है,
कि
“भारत
भूटान
के
व्यापार
और
वाणिज्य
के
लिए
एक
स्रोत
और
बाजार
दोनों
के
रूप
में
सबसे
महत्वपूर्ण
व्यापारिक
भागीदार
है।
2014
से,
भूटान
के
साथ
भारत
का
व्यापार
2014-15
के
484
मिलियन
डॉलर
से
लगभग
तीन
गुना
बढ़कर
2021-22
में
1.42
बिलियन
डॉलर
हो
गया
है,
जो
भूटान
के
कुल
व्यापार
का
लगभग
80
प्रतिशत
है।
2014
से
2022
तक
क्रमशः
184
मिलियन
डॉलर,
188
मिलियन
डॉलर,
201
मिलियन
डॉलर,
168
मिलियन
डॉलर,
286
मिलियन
डॉलर,
334
मिलियन
डॉलर,
305
मिलियन
डॉलर
और
332
मिलियन
डॉलर
के
व्यापार
अधिशेष
के
साथ
भारत-भूटान
व्यापार
में
भारत
का
महत्वपूर्ण
व्यापार
अधिशेष
है”।
अखबार
ने
लिखा
है,
कि
“भारत
भूटान
के
राजस्व
के
सबसे
महत्वपूर्ण
स्रोत
जलविद्युत
उद्योग
को
नियंत्रित
करता
है।
और
भारत
के
व्यापारिक
मॉडल
के
कारण
भूटान
पर
गंभीर
कर्ज
हो
गया
है,
और
भारत
पर
भूटान
की
आर्थिक
निर्भरता
भी
गहरी
हो
गई
है।
दूसरी
ओर,
भूटान
के
जलविद्युत
का
एक
महत्वपूर्ण
हिस्सा
भारत
को
निर्यात
किया
गया
है,
जो
देश
के
सकल
घरेलू
उत्पाद
का
लगभग
एक-चौथाई
है।

‘भूटान
की
विदेश
नीति
पर
भारत
का
कब्जा’
चीन
ने
आरोप
लगाए
हैं,
कि
“भारत
भूटान
की
सुरक्षा
और
आर्थिक
जीवन
रेखा
को
नियंत्रित
करता
है,
जो
इसे
भूटान
के
आंतरिक
मामलों
और
विदेश
नीति
में
हस्तक्षेप
करने
में
सक्षम
बनाता
है,
भूटान
को
लेकर
भारत
के
क्षेत्रीय
आधिपत्य
को
उजागर
करता
है”।
चीन
का
आरोप
है,
कि
“सुरक्षा
और
अर्थव्यवस्था
के
क्षेत्र
में
भूटान
पर
अपने
पूर्ण
नियंत्रण
के
आधार
पर
भारत
अक्सर
भूटान
के
आंतरिक
मामलों
में
हस्तक्षेप
करता
है।
एक
ओर,
नई
दिल्ली
भूटान
पर
अपनी
सीमाओं
के
भीतर
उग्रवाद
पर
नकेल
कसने
का
दबाव
डालती
है।
जिसमें
असम
से
भागे
उग्रवादी
समूह
हैं,
जो
भूटान
से
भारत
के
खिलाफ
गुरिल्ला
युद्ध
करते
हैं।
यूनाइटेड
लिबरेशन
फ्रंट
ऑफ
असोम
(ULFA)
और
नेशनल
डेमोक्रेटिक
फ्रंट
ऑफ
बोडोलैंड
(NDFB)
ने
भारतीय
राज्य
असम
में
गुरिल्ला
युद्ध
शुरू
करने
के
लिए
भूटान
में
इन
शिविरों
का
फायदा
उठाया।

भारत
पर
लगाया
भूटान
के
दमन
का
आरोप
ग्लोबल
टाइम्स
ने
लिखा
है,
कि
केवल
50
देशों
के
साथ
ही
भूटान
के
साथ
राजनयिक
संबंध
हैं,
और
सिर्फ
भारत,
बांग्लादेश
और
कुवैत
के
ही
भूटान
में
दूतावास
हैं।
भारत
लगातार
भूटान
का
दमन
करता
रहा
है
और
चीन
के
साथ
राजनयिक
संबंध
स्थापित
करने
के
उसके
प्रयासों
में
बाधा
डालता
रहा
है।
भूटान
ने
संयुक्त
राष्ट्र
सुरक्षा
परिषद
के
पांच
स्थायी
सदस्यों
में
से
किसी
के
साथ
भी
औपचारिक
राजनयिक
संबंध
स्थापित
नहीं
किए
हैं।
एक
ऑस्ट्रेलियाई-ब्रिटिश
पत्रकार
नेविल
मैक्सवेल
ने
चीन
में
भारत
के
पूर्व
राजदूत
अशोक
कांथा
के
साथ
एक
साक्षात्कार
में
कहा,
“भूटान
को
पीआरसी
के
साथ
औपचारिक
राजनयिक
संबंध
खोलने
की
अनुमति
नहीं
दी
गई
है,
और
चीन
के
साथ
वर्षों
की
सीमा
वार्ता
कभी
आगे
नहीं
बढ़ी
है।”
कुल
मिलाकर
भारत
और
भूटान
संबंधों
में
दरार
नहीं
डाल
पाने
की
वजह
से
चीन
ने
अपनी
खीझ
निकाली
है।
क्योंकि,
भारत
की
सरकारों
ने
अभी
तक
भूटान
में
चीन
को
अपने
पैर
पसारने
नहीं
दिए
हैं।
Imran
Khan:
‘सेना
सिर्फ
सरहद
पर
रहेगी’,
जानिए
इमरान
खान
के
किस
प्लान
से
बौखलाई
है
PAK
आर्मी?
English summary
India-Bhutan-China: China has alleged that China is unable to maintain relations with Bhutan because of India.