सऊदी अरब और रूस में हो सकता है तनाव
पॉल सांके ने कहा कि रूसी रणनीति है कि अपने तेल के निर्यात को यूरोप से हटाकर अब एशिया में बेचा जाए। अब तक सऊदी अरब ही एशिया में तेल की आपूर्ति में दबदबा रखता था। उन्होंने कहा कि इससे दोनों ही तेल निर्यातक देशों के बीच एक प्रतिस्पर्द्धा शुरू हो गई है जो काफी अहम है। उन्होंने कहा कि सऊदी प्रिंस और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच अच्छे संबंधों के बाद भी तेल के खेल से टेंशन पैदा होने की आशंका बढ़ गई है। इससे पहले सऊदी अरब और रूस दोनों ही मिलकर तेल के उत्पादन में कमी या बढ़ोत्तरी को लेकर फैसला करते थे।
यूक्रेन युद्ध के पहले तक भारत केवल 2 फीसदी रूसी तेल खरीदता था लेकिन यह अब बढ़कर कुल जरूरत का 20 फीसदी हो गया है। भारत ने रूसी सीबॉर्न तेल खरीदने के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। वहीं चीन भी हर दिन करीब 8 लाख बैरल तेल पाइपलाइन के जरिए रूस से खरीद रहा है। नाटो देशों के प्रतिबंध लगाने के बाद अब रूस अपने ऊर्जा निर्यात में विविधता ला रहा है। रूस अपने समुद्र के रास्ते भेजे जाने वाले तेल का 90 फीसदी अब केवल भारत और चीन को बेच रहा है। रूस अब चीन को और ज्यादा तेल बेचने की तैयारी कर रहा है।
रूस के खिलाफ रणनीति बनाए सऊदी अरब
इस तरह से एशिया में तेल के व्यापार में अब सऊदी अरब के लिए रूस बड़ी चुनौती बन गया है। पॉल सांके ने सऊदी अरब को सलाह दी कि उसे रूस के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए प्रभावी रणनीति बनानी होगी। रूस भारत समेत एशिया के कई देशों को बेहद सस्ते दर पर तेल दे रहा है जो प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ा रहा है। भारत और चीन दुनिया के सबसे बड़े तेल आयातक देशों में शामिल हैं। अब यहां रूस का दबदबा कायम हो गया है।