इस्लामिक परंपरा के मुताबिक किसी व्यक्ति की मौत के 40 दिनों तक परिवार में मातम मनाया जाता है। इस दौरान कोई भी शुभ काम नहीं किए जाते। किसी तरह की खुशियां नहीं मनाई जाती। 40 दिन पूरे होने पर चालीसवें की रस्म अदा की जाती है। परिवार के सदस्य व दूसरे करीबी आमतौर पर सुबह ही मरहूम यानी मृतक की कब्र पर जाते हैं। वहां फूल चढ़ाते हैं और चादर पोशी की जाती है। मरने वाले को जन्नत में जगह मिलने की दुआएं की जाती हैं। इसके अलावा घरों पर धार्मिक ग्रंथों का पाठ किया जाता है। गरीबों को खाना खिलाया जाता है। भंडारे का आयोजन होता है। गरीबों को बर्तन, कपड़ों व दूसरे सामानों का दान किया जाता है।
माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या 15 अप्रैल को हुई थी। इस हत्याकांड के बाद से अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन फरार है, जबकि चार बेटे जेल में हैं और एक असद पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था। अतीक, अशरफ और असद को उनके पैतृक कब्रिस्तान कसारी-मसारी में दफनाया गया था। असद का चालीसवां बुधवार को था, जबकि अतीक-अशरफ का चालीसवां गुरुवार को था। लेकिन दोनों ही दिन कोई भी उनकी कब्र पर नहीं पहुंचा।
जिस कब्रिस्तान में इन्हें दफनाया गया था, वहां पूरी तरह सन्नाटा पसरा रहा। अतीक और अशरफ के जिस पुश्तैनी घर पर कभी सैकड़ों का हुजूम जमा रहता था वहां भी कोई झांकने नहीं पहुंचा। एक समय था कि अतीक अहमद के काफिले में दर्जनों गाड़ियां शामिल रहती थीं, समानांतर अदालत लगती थी, लेकिन चालीसवें पर करीबियों ने भी दूरी बनाए रखी।