Explained: मुर्मू या मोदी किसे करना चाहिए संसद भवन का उद्घाटन, क्या कहता है संविधान, जानिए सबकुछ

नई दिल्‍ली: भारत के नए संसद भवन का 28 मई को उद्घाटन होना है। इसके पहले ही नई राजनीतिक बहस छिड़ गई है। विवाद के केंद्र में यह सवाल है कि नई संसद का उद्घाटन किसे करना चाहिए? दरअसल, केंद्र सरकार पहले ही घोषणा कर चुकी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) नए संसद भवन का उद्घाटन (New Parliament House Inauguration) करेंगे। यह और बात है कि कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (TMC), राष्ट्रीय जनता दल (RJD) समेत तमाम विपक्षी दलों ने इसे असंवैधानिक बताया है। उनका तर्क है कि संव‍िधान‍ के अनुसार, भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नई संसद का उद्घाटन करना चाहिए। इस पूरे मुद्दे को कई नजरियों से देखा जा रहा है। उनमें से एक यह भी है कि राष्‍ट्रपति तो बहाना है असली मकसद तो विपक्ष की ताकत दिखाना है। इस मुद्दे के जरिये तमाम विपक्षी दलों ने मोदी सरकार को घेरना तक शुरू कर दिया है। कांग्रेस ने तो केंद्र पर यह आरोप तक लगाया है कि राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) को सरकार ने आमंत्रित करने की भी जहमत नहीं उठाई है। आइए, यहां पूरे मामले को समझने की कोशिश करते हैं।

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क्‍या कहता है संविधान?
राष्ट्रपति देश का सर्वोच्‍च संवैधानिक पद है। उनके पास कई तरह की शक्तियां होती हैं। राष्ट्रपति की शक्तियों में कार्यकारी, विधायी, न्यायपालिका, आपातकालीन और सैन्य शक्तियां शामिल हैं। संसद के तहत लोकसभा (निचला सदन) और राज्यसभा (ऊपरी सदन) आते हैं। इसका मुख्‍य काम विधान बनाना है। संविधान का अनुच्छेद 79 कहता है कि देश के लिए एक संसद होगी। इसमें राष्ट्रपति और दो सदन – राज्यसभा और लोकसभा शामिल होंगे।

दूसरी ओर संविधान के अनुच्छेद 74 (1) में कहा गया है, ‘राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए प्रधानमंत्री के साथ एक मंत्रिपरिषद होगा जो उनके कामों में मदद करेगा। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद को अपनी सलाह पर दोबारा विचार करने के लिए कह सकते हैं। इस पर दोबारा विचार हो जाने के बाद राष्ट्रपति को दी गई सलाह के अनुसार काम करना होगा।’

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इस तरह भारतीय संविधान में साफ है कि संसद में राष्ट्रपति और सर्वोच्च विधायिका के दो सदन – राज्यसभा और लोकसभा शामिल हैं। आर्टिकल 87 कहता है कि प्रत्येक संसदीय सत्र की शुरुआत में राष्ट्रपति दोनों सदनों को संबोधित करेंगे।

क्‍या है बीजेपी का कहना?
बीजेपी के तमाम नेताओं की अब तक इस मुद्दे पर सधी हुई प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के पक्ष या विपक्ष में कुछ भी नहीं कहा है। हालांकि, वे यह जरूर कह रहे हैं कि विपक्ष सिर्फ विरोध के लिए विरोध कर रहा है। इस पूरे मसले को बेवजह तूल दी जा रही है। इनमें से कई विपक्षी दलों ने कोविड के दौरान वैक्‍सीन का भी विरोध किया था।

क्या कह रहे हैं विपक्षी नेता
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री को नहीं बल्कि राष्ट्रपति को करना चाहिए। कांग्रेस नेता आनंद शर्मा बोल चुके हैं कि यह संवैधानिक रूप से कतई गलत है कि संसद के बारे में कोई बड़ा फैसला संसद के मुखिया राष्‍ट्रपति को बाहर रखकर लिया जाए।

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ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने भी सवाल किया कि पीएम मोदी नई संसद का उद्घाटन क्यों कर रहे हैं। पार्टी ने कहा है कि पीएम को संसद का उद्घाटन क्यों करना चाहिए? वह कार्यपालिका के प्रमुख हैं, विधायिका के नहीं। हमारे पास शक्तियों का सैपरेशन है। लोकसभा स्‍पीकर या राज्यसभा के चेयरमैन इसका उद्घाटन कर सकते थे।

शिवसेना (यूबीटी) की नेता प्रियंका चतुर्वेदी का भी कुछ यही रुख है। उन्‍होंने कहा कि माननीय राष्ट्रपति विधानमंडल की प्रमुख हैं। वह सरकार के प्रमुख यानी भारत के पीएम से ऊपर हैं। प्रोटोकॉल के तहत नई संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति को करना चाहिए। सत्ता के मद में अंधी बीजेपी संवैधानिक अनैतिकता की फव्वारा बन गई है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस बहस में एक जाति का एंगल जोड़ दिया है। उन्‍होंने कहा, ‘ऐसा लगता है कि मोदी सरकार ने सिर्फ चुनावी कारणों से दलित और आदिवासी समुदायों से भारत के राष्ट्रपति का चुनाव सुनिश्चित किया है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नई संसद के शिलान्यास समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया था। अब भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नए संसद भवन के उद्घाटन में नहीं बुलाया जा रहा है। वह अकेले सरकार, विपक्ष और हर नागरिक का समान रूप से प्रतिनिधित्व करती हैं।

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