क्यों चीन के करीब हुआ रूस
हाल ही में पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने भी कहा है कि चीन के प्रति रूस की खतरनाक स्थिति ने जिनपिंग को इतना ताकतवर बना दिया है कि वह उसे भारत के साथ संपर्क न करने के लिए बाध्य कर सकते हैं। उनकी मानें तो यह वह स्थिति है जिसके बारे में भारतीय नीतिकारों को सोचना होगा लेकिन यह मसला काफी जटिल है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह बात सच है कि चीन पिछले करीब एक दशक से रूस का करीबी अनौपचारिक साथी बना हुआ है।
साल 2014 में जब रूस ने क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर दिया तो पश्चिमी देशों की तरफ से उसे अलग-थलग या अकेला करने की कई कोशिशें हुईं। इसके बाद फरवरी 2022 में रूस ने चीन पर हमला कर दिया। इसके बाद कई प्रतिबंधों की वजह से यूरोप और अमेरिका का दबाव रूस पर बढ़ गया। ऐसे में चीन जो हमेशा से अमेरिका विरोधी रहा है, उसका साथी बनकर सामने आया। यूक्रेन युद्ध के बाद जब रूस ने खुद को कूटनीतिक तौर पर अकेला पाया तो वह चीन की तरफ झुकता चला गया।
क्या हैं रिश्तों का आधार
जिस तरह से भारत और अमेरिका के रणनीतिक रिश्ते हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन को रोकने की नीति पर आधारित हैं, उसी तरह से रूस और चीन के रिश्ते भी पश्चिमी देशों के खासतौर पर अमेरिका के खिलाफ बने हैं। रूस और चीन दोनों ही पश्चिमी गठबंधन के विरोध में एक साथ आए हैं। भारत और रूस के रिश्ते पिछले कई वर्षों से कायम द्विपक्षीय भरोसे और रणनीतिक सहयोग पर आधारित हैं। रूस के लिए, चीन के अलावा भारत ही एकमात्र ऐसा दोस्त है जो एक बड़ा वैश्विक प्रभाव कायम किए हुए है और जिसकी तरफ वह मुड़ सकता है।
भारत को अलग नहीं करेगा रूस
भारत के साथ अपने संबंधों को तोड़ना रूस के लिए एक तरह की ‘रणनीतिक आत्महत्या’ होगी क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो वह स्थायी तौर पर चीन का गुलाम बन जाएगा। साल 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद रूस पहले ही यूरोपियन यूनियन में मौजूद अपने सहयोगियों का भरोसा खो चुका है। ऐसे में भारत को अलग-थलग करने से रूस के पासवैश्विक स्तर पर कोई भी फायदा नहीं होगा। साथ ही उसे चीन के खिलाफ मिलने वाला किसी भी तरह का कोई भी फायदा या कूटनीतिक लाभ का मौका भी खत्म हो जाएगा। इसके अलावा, यह स्थायी रूप से भारत का भरोसा खो देगा। ऐसे में रूस और चीन गठबंधन जल्दबाजी में लिया गया फैसला लगता है।
रूस के लिए जरूरी भारत
रूस ने हाल ही में अपनी विदेश नीति अवधारणा पत्र में साफतौर पर चीन के साथ-साथ भारत को ‘सत्ता के दो अनुकूल संप्रभु वैश्विक केंद्र’ के रूप में पहचाना है। यह बात भी सच है कि जहां चीन, भारत को एशिया में अपने प्रतिद्वंदी के तौर पर देखता है तो वहीं रूस, अमेरिका के साथ बाद के संबंधों के बाद भी नई दिल्ली को अपने लिए कोई खतरा नहीं मानता है। विशेषज्ञों के मुताबिक चीन और रूस के बीच रिश्तों को नीतिगत फैसलों में रखा जाना चाहिए लेकिन रूस और भारत चीन की वजह से अलग हो जाएंगे, ऐसी संभावना कम ही है। भारत के लिए रूस पर अपनी निर्भरता को कम करना जरूरी है। साथ ही उसके लिए रूस के साथ संबंध बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है। भारत और रूस के संबंध, मॉस्को को चीन की झोली में गिरने से रोकने के लिए काफी मजबूत है।