3 सालों के अंतराल के बाद एकबार फिर से कैलाश-मानसरोवर की यात्रा शुरू होने जा रही है। हिन्दुओं का यह पवित्र तीर्थस्थान फिलहाल चीन के अधिकार क्षेत्र में आता है। यात्रा सम्बन्धी कई सवाल श्रद्धालुओं के मन में बने रहते हैं।
Features
lekhaka-Rahul Sundan

Kailash
Mansarover:
कैलाश
पर्वत
और
पवित्र
मानसरोवर
झील
की
तीर्थयात्रा
का
इतिहास
हजारों
वर्ष
पुराना
है।
हिंदू
मान्यताओं
के
अनुसार,
कैलाश
पर्वत
के
ऊपर
स्वर्ग
और
नीचे
मृत्युलोक
है।
शिवपुराण,
स्कंदपुराण,
और
मत्स्यपुराण
में
कैलाश
खंड
नाम
से
अलग
अध्याय
मिलता
है,
जहां
इसकी
महिमा
का
उल्लेख
किया
गया
है।
हिन्दू
धर्म
के
अनुसार,
कैलाश
पर्वत
को
भगवान
शिव
का
निवास
स्थान
माना
गया
है।
जबकि
मानसरोवर
हिमालय
से
घिरी
एक
पवित्र
झील
है,
जिसे
हिन्दू
धर्मग्रंथों
में
क्षीर
सागर
के
नाम
से
वर्णित
किया
गया
है।
यह
कैलाश
पर्वत
से
लगभग
40
किमी
की
दूरी
पर
है।
ऐसी
मान्यता
है
कि
इसी
में
शेषशैय्या
पर
भगवान
विष्णु
व
मां
लक्ष्मी
का
निवास
है।
महाभारत
में
कैलाश
को
पर्वतों
का
राजा,
तपस्वियों
के
आश्रय
का
शाश्वत
स्वर्ण
कमल
और
जीवन
अमृत
देने
वाली
नदियों
का
उदगम
स्थल
कहा
गया
है।
इस
कैलाश
पर्वत
का
तिब्बती
नाम
गंग
रिन
पोचे
है।
यहां
एक
राक्षस
ताल
भी
है।
जोकि
खारे
पाने
की
एक
झील
है।
मान्यता
है
कि
रावण
ने
इसी
स्थान
पर
भगवान
शिव
को
प्रसन्न
करने
के
लिए
तपस्या
की
थी।
बौद्ध
धर्म
में
मानसरोवर
कैलाश-मानसरोवर
हिन्दुओं
के
साथ-साथ
जैन,
बौद्ध
और
सिख
धर्मों
का
भी
पवित्र
धार्मिक
स्थान
है।
बौद्ध
धर्मावलंबियों
का
मानना
है
कि
इस
स्थान
पर
आकर
उन्हें
निर्वाण
की
प्राप्ति
होती
है।
बौद्ध
धर्म
के
अनुसार,
कैलाश
पर्वत
को
मेरु
पर्वत
के
नाम
से
जाना
जाता
है।
उनके
अनुसार
यह
वह
स्थान
है
जहां
भगवान
बुद्ध
ने
ध्यान
किया
था।
यह
भी
कहा
जाता
है
कि
भगवान
बुद्ध
की
माता
ने
यहां
की
यात्रा
की
थी।
सिख
धर्म
में
मानसरोवर
का
महत्व
गुरु
नानकदेव
भी
कैलाश
की
यात्रा
पर
गये
थे।
मान्यता
है
कि
वह
हेमकुंड
के
रास्ते
बद्रीनाथ
पहुंचे
थे।
और
वहां
से
कैलाश
पर्वत
के
समीप
मानसरोवर
पहुंचे
थे।
वहां
गुरु
नानकदेव
को
84
सिद्ध
व
गोरखनाथ
मण्डली
मिली
थी।
इसके
साथ
मान्यता
यह
भी
है
कि
यहां
सिख
धर्म
के
संस्थापक
गुरु
नानक
देव
ने
ध्यान
करना
सीखा
था।
जैन
धर्म
में
महत्व
जैन
धर्म
के
अनुसार,
मानसरोवर
वह
स्थान
है
जहां
पहले
तीर्थंकर
भगवान
ऋषभ
देव
ने
आध्यात्मिक
मुक्ति
प्राप्त
की
थी।
भगवान
ऋषभदेव
का
यह
निर्वाण
स्थल
अष्टपद
भी
कहलाता
है।
कहते
हैं
कि
ऋषभदेव
ने
आठ
पग
में
कैलाश
की
यात्रा
की
थी।
कैलाश-मानसरोवर
चीन
का
हिस्सा
कैलाश
पर्वत
तिब्बत
में
स्थित
है
और
तिब्बत
पर
फिलहाल
चीन
का
कब्जा
है।
इसलिए
यहां
जाने
के
लिए
चीन
से
वीजा
लेना
अनिवार्य
है।
हालांकि
यात्रा
के
सन्दर्भ
में
भारत
के
विदेश
मंत्रालय
की
तरफ
से
जरुरी
जानकारियां
और
सहायता
दोनों
उपलब्ध
करवाई
जाती
हैं।
यह
यात्रा
भारतीय
विदेश
मंत्रालय
द्वारा
प्रति
वर्ष
जून
से
सितंबर
माह
के
दौरान
दो
अलग-अलग
मार्गों
–
लिपुलेख
दर्रा
(उत्तराखंड)
और
नाथू
ला
दर्रा
(सिक्किम)
से
करवाई
जाती
है।
चूंकि
यह
स्थान
चीन
में
आता
है
तो
इसके
लिए
वीजा
से
लेकर
कई
झंझटों
का
आपको
सामना
करना
होगा।
इसमें
सबसे
बड़ी
समस्या
यात्रा
के
खर्चे
को
लेकर
है।
तो
आपको
बता
दें
कि
कैलाश-मानसरोवर
यात्रा
के
इन
दोनों
रास्तों
का
अलग-अलग
शुल्क
लगता
है।
लिपुलेख
मार्ग
का
खर्च
(प्रति
व्यक्ति)
–
विदेश
मंत्रालय
की
अधिकारिक
वेबसाइट
www.kmy.gov.in
के
अनुसार,
यदि
कोई
श्रद्धालु
लिपुलेख
मार्ग
से
होकर
जाता
है,
तो
कुमाऊं
मंडल
विकास
निगम
के
खाते
में
उसे
₹5000
जमा
करवाने
होंगे।
यह
राशि
यात्रा
की
कन्फर्मेशन
के
लिए
होती
है
जोकि
रिफंडेबल
नहीं
होती।
इसके
बाद
₹30,000
कुमाऊं
मंडल
विकास
निगम
के
खाते
में
अलग
से
जमा
करवाने
होंगे।
श्रद्धालु
की
चिकित्सा
जांच
दिल्ली
हार्ट
एंड
लंग
इंस्टीट्यूट
में
होगी,
जहां
कुल
खर्चा
₹5600
आयेगा।
इसके
बाद
चीन
के
वीजा
शुल्क
के
₹2,400
देने
होंगे।
इसके
अलावा
भारतीय
सीमा
के
भीतर
आने-जाने
के
लिए
कुली
के
लिए
₹12189
और
टट्टू
तथा
टट्टूचालक
को
₹16081
देने
होंगे।
वहीं
सामूहिक
कार्यकलापों
के
लिए
₹4,000
लगेंगे।
तिब्बत
में
पहुंचने
पर
ठहरने,
परिवहन,
प्रवेश
टिकटों
इत्यादि
के
लिए
अमेरिकी
डॉलर
में
भुगतान
करना
पड़ेगा।
जिसकी
कुल
राशि
$950
है।
भारतीय
मुद्रा
में
यह
लगभग
₹78538.45
रहेगी।
इसके
बाद
चीन
की
सीमा
के
भीतर
आने-जाने
के
लिए
कुली
के
लिए
आपको
990
चीनी
यूआन
(₹11582.10)
का
भुगतान
करना
होगा।
इसके
साथ
ही
चीन
सीमा
के
भीतर
टट्टू
और
टट्टू
चालक
की
देय
राशि
2370
चीनी
युआन
(₹27726.84)
लगेगी।
इसके
अलावा
यात्रा
सम्बन्धी
अन्य
निजी
खर्चे
आपको
स्वयं
भुगतने
होंगे।
जैसे
भारतीय
सीमा
में
जहां
से
यात्रा
शुरू
होगी
वहां
तक
पहुंचने
का
खर्चा
इत्यादि।
नाथु
ला
मार्ग
का
खर्च
(प्रति
व्यक्ति)-
यदि
कोई
यात्री
नाथु
ला
से
होकर
यात्रा
करता
है
तो
उसे
सिक्किम
पर्यटन
विकास
निगम
के
खाते
में
₹5000
जमा
करवाने
होंगे।
यह
राशि
यात्रा
की
कन्फर्मेशन
के
लिए
होती
है
जोकि
रिफंडेबल
नहीं
होती।
इसके
बाद
₹20,000
सिक्किम
पर्यटन
विकास
निगम
के
खाते
में
अलग
से
जमा
करवाने
होंगे।
सिक्किम
पहुंचने
के
लिए
सबसे
नजदीकी
हवाई
अड्डा
पश्चिम
बंगाल
का
बागडोगरा
है
तो
दिल्ली-बागडोगरा-दिल्ली
का
हवाई
खर्चा
₹14,000
लगेगा।
श्रद्धालु
की
चिकित्सा
जांच
दिल्ली
हार्ट
एंड
लंग
इंस्टीट्यूट
में
होगी,
जहां
कुल
खर्चा
₹5600
आयेगा।
इसके
बाद
चीन
के
वीजा
शुल्क
₹2,400
देने
होंगे।
वहीं
सामूहिक
कार्यकलापों
के
लिए
₹4,000
लगेंगे।
तिब्बत
में
पहुंचने
पर
ठहरने,
परिवहन,
प्रवेश
टिकटों
इत्यादि
के
लिए
अमेरिकी
डॉलर
में
भुगतान
करना
रहेगा।
जिसकी
कुल
राशि
$2200
(₹181874.77)
है।
इसके
बाद
चीन
की
सीमा
के
भीतर
आने-जाने
के
लिए
कुली
के
लिए
आपको
990
चीनी
यूआन
(₹11582.10)
का
भुगतान
करना
होगा।
इसके
साथ
ही
चीन
सीमा
के
भीतर
टट्टू
और
टट्टू
चालक
की
देय
राशि
2370
चीनी
युआन
(₹27726.84)
लगेगी।
इसके
अलावा
यात्रा
सम्बन्धी
अन्य
निजी
खर्चे
आपको
स्वयं
भुगतने
होंगे।
आवेदन
व
जांच
यात्रा
के
इच्छुक
श्रद्धालुओं
को
सबसे
पहले
विदेश
मंत्रालय
की
अधिकारिक
वेबसाइट
www.kmy.gov.in
पर
ऑनलाइन
आवेदन
करना
होता
है।
आवेदन
के
उपरांत
जिन
आवेदकों
का
चयन
होता
है
उन्हें
विभाग
द्वारा
सूचित
किया
जाता
है।
यात्री
के
लिए
आवश्यक
है
कि
वह
भारत
का
नागरिक
हो,
उसके
पास
6
महीने
का
वैध
पासपोर्ट
हो,
उसकी
आयु
18
से
70
वर्ष
के
बीच
हो,
उसका
बॉडी
मास
इंडेक्स
(बीएमआई)
25
से
कम
हो,
यानि
वह
पूर्णतः
स्वस्थ्य
हो।
साथ
ही
यात्री
को
एक
वचन
पत्र
भी
देना
रहता
है,
ताकि
आपात
स्थिति
में
हेलिकॉप्टर
द्वारा
निकासी
हो
सके।
साथ
ही
सहमति
पत्र
भी
देना
होगा
जिसमें
चीनी
क्षेत्र
में
मृत्यु
होने
की
स्थिति
में
पार्थिव
शरीर
का
अंतिम
संस्कार
किया
जा
सके।
भारत
सरकार
कैलाश-मानसरोवर
यात्रा
को
बैचों/जत्थे
में
करवाती
है।
लिपुलेख
दर्रा
मार्ग
से
60
तीर्थयात्रियों
के
18
जत्थे
और
नाथू
ला
दर्रा
मार्ग
से
50
श्रद्धालुओं
के
10
जत्थे
कैलाश-मानसरोवर
यात्रा
के
लिए
निकलते
हैं।
लिपुलेख
दर्रा
मार्ग
की
यात्रा
यह
यात्रा
दिल्ली
से
प्रारंभ
होती
है।
इसके
बाद
यात्रा
बस
द्वारा
अलमोड़ा
पहुंचती
है।
फिर
बुधि
होते
हुए
गुंजी,
फिर
नबी,
कालापानी,
नवीधांग
की
पैदल
यात्रा
रहती
है।
नवीधांग
के
उपरांत
लिपुलेख
दर्रा
मार्ग
से
होते
हुए
तिब्बत
(चीन)
में
प्रवेश
किया
जाता
है
और
श्रद्धालु
तकलाकोट
पहुंचते
है।
यहां
तक
का
सफर
12
दिन
में
तय
होता
है।
तकलाकोट
से
तारचेन
और
वहां
से
कैलाश
परिक्रमा
प्रारंभ
हो
जाती
है,
जिसमें
डेराफुक,
जुनजुई
पु
और
क्यूगु
पहुंचा
जाता
है।
क्यूगु
पर
यात्रा
समाप्त
हो
जाती
है।
नाथु
ला
(सिक्किम)
मार्ग
यात्रा
दिल्ली
में
स्वास्थ्य
व
कागजी
कार्रवाई
पूरी
होने
के
पश्चात
यह
यात्रा
गंगटोक
पहुंचती
है।
फिर
गंगटोक
से
शेराथांग
पहुंचते
है।
शेराथांग
से
नाथु
ला
होते
हुए
तिब्बत
(चीन)
में
प्रवेश
होता
है।
जिसमें
कंगमा,
लजी,
जांगबा
होते
हुए
तारचेन
पहुंचते
है।
यहां
तक
का
सफर
बस
द्वारा
तय
किया
जाता
है।
उसके
उपरांत
तारचेन
से
होते
हुए
डेराफुक
और
फिर
जुनजुई
पु
से
होते
हुए
क्यूगु
पहुंचा
जाता
है।
उसके
उपरांत
यहां
से
यात्रा
की
वापसी
होती
है।
श्रद्धालुओं
के
लिए
कैलाश
मानसरोवर
की
यात्रा
एक
दिव्य
अनुभव
होता
है,
हालांकि
चीन
द्वारा
तीर्थयात्रियों
की
सुविधाओं
के
लिए
कोई
विशेष
प्रबंध
न
किए
जाने
से
यात्रा
अत्यंत
कष्टपूर्ण
हो
सकती
है।
इसलिए
इसे
भारत
के
तीर्थों
की
यात्रा
जैसा
आरामदायक
न
समझें
और
पूरी
फिटनेस
होने
पर
ही
कैलाश
मानसरोवर
तीर्थ
की
यात्रा
करें।
English summary
kailash mansarovar yatra 2023 Know about tour package cost and details