भारतीय राजाओं ने हमेशा से राजदंड धारण किया था। यह धर्म, दर्शन और व्यवस्था से गहराई से जुड़ा है। राजदंड मुख्य रूप से हिंदू देवी-देवताओं, विशेष रूप से शासन, सुरक्षा और न्याय से जुड़े लोगों के हाथों में दर्शाया गया है।
Features
lekhaka-Yogesh Sharma

Sengol
or
Rajdand:
राजदंड
भारत
ही
नहीं
बल्कि
दुनिया
के
लगभग
सभी
सभ्यताओं
का
हिस्सा
रहा
है।
आजकल
यह
नये
संसद
भवन
को
लेकर
चर्चा
में
है।
साल
1947
में
तमिलनाडु
में
बना
एक
राजदंड,
जिसे
सेंगोल
कहा
जाता
है,
अब
तक
प्रयागराज
के
आनंद
भवन
स्थित
संग्रहालय
में
रखा
हुआ
था।
इसका
इतिहास
चोल
साम्राज्य
से
जुड़ा
है।
सेंगोल
जिस
राजा
को
हस्तान्तरित
किया
जाता
था,
उससे
न्यायपूर्ण
शासन
की
अपेक्षा
की
जाती
थी।
क्या
है
राजदंड
का
महत्व
राज्याभिषेक
के
बाद
किसी
भी
राजा
को
पहले
ताज
पहनाया
जाता
था
और
फिर
छड़ी
थमाई
जाती
थी।
ऐतिहासिक
तथ्यों
पर
गौर
करें
तो
राजा
उसी
को
माना
जाता
था
जिसके
सिर
पर
ताज
होता
था।
इस
ताज
को
राज्य
के
अधिकार
से
जोड़कर
देखा
जाता
है,
लेकिन
राज्य
से
संबंधित
निर्णय
लेने
का
अधिकार
तभी
मिलता
था
जब
राजा
के
हाथ
में
राजदंड
होता
था।
पुरातन
काल
में
यदि
राजा
किसी
और
को
राज्य
का
प्रभार
देकर
कहीं
यात्रा
पर
भी
जाता
था
तो
उस
व्यक्ति
को
राजदंड
सौंपना
पड़ता
था।
हिंदू
धर्म
के
चारों
प्रमुख
शंकराचार्यों
सहित
ईसाई
धर्म
के
प्रमुख
पोप
भी
ऐसे
ही
एक
धर्म
राजदंड
को
अपने
साथ
रखते
हैं।
यह
उनकी
शक्ति
तथा
सत्ता
का
प्रतीक
है।
भारतीय
शास्त्रों
के
अनुसार
इसे
राजा-महाराजा
सिंहासन
पर
बैठते
समय
धारण
करते
थे।
महाभारत
काल
में
इसका
महत्व
महाभारत
के
शांतिपर्व
के
राजधर्मानुशासन
अध्याय
में
भी
राजदंड
का
उल्लेख
है,
इसमें
अर्जुन
ने
सम्राट
युधिष्ठिर
को
राजदंड
की
महत्ता
समझाई
थी।
अर्जुन
ने
कहा
था
कि
“राजदंड
राजा
का
धर्म
है,
दंड
ही
धर्म
और
अर्थ
की
रक्षा
करता
है।
इसलिए
राजदंड
को
आप
धारण
करें।”
यहां
राजदंड
का
आशय
राजा
के
द्वारा
दिए
जाने
वाले
दंड
से
भी
लगाया
गया
है,
इसमें
अर्जुन
कहते
है
कि
“कितने
ही
पापी
राजदंड
के
भय
से
पाप
नहीं
करते।
जगत
की
ऐसी
ही
स्वाभाविक
स्थिति
है,
इसीलिए
सबकुछ
दंड
में
ही
प्रतिष्ठित
है।”
राजदंड
बना
न्याय
का
प्रतीक
9वीं
शताब्दी
से
लेकर
13वीं
शताब्दी
तक
दक्षिण
भारत
पर
चोल
साम्राज्य
का
राज
था।
इसे
भारत
का
सबसे
शक्तिशाली
साम्राज्य
माना
जाता
है।
ऐसा
कहा
जाता
है
कि
चोल
सम्राज्य
के
बाद
विजय
नगर
साम्राज्य
में
भी
सेंगोल
यानी
राजदंड
का
इस्तेमाल
किया
गया
था।
कुछ
इतिहासकार
मुगलों
और
अंग्रेजों
के
समय
भी
इसके
प्रयोग
होने
की
बात
कहते
है।
राजदंड
का
उपयोग
मौर्य
साम्राज्य
(322-185
ईसा
पूर्व)
में
भी
मिलता
है।
जहां
इसका
उपयोग
मौर्य
सम्राटों
ने
अपने
विशाल
साम्राज्य
पर
अधिकार
को
दर्शाने
के
लिए
किया।
इसके
बाद
गुप्त
साम्राज्य
(320-550
ईस्वी),
चोल
साम्राज्य
(907-1310
ईस्वी)
और
विजयनगर
साम्राज्य
(1336-1646
ईस्वी)
द्वारा
राजदंड
के
इस्तेमाल
के
विशेष
उल्लेख
मिलते
हैं।
सम्राट
हर्ष
और
कनिष्क
ने
भी
राजदंड
रखा
था।
दुनिया
के
कई
देशों
में
है
राजदंड
की
परंपरा
राजा
के
हाथ
में
राजदंड
देने
की
परंपरा
दुनिया
के
कई
देशों
में
है।
1661
में
सबसे
पहले
चार्ल्स
द्वितीय
के
राज्याभिषेक
के
दौरान
सॉवरेन्स
ऑर्ब
ने
इसे
बनवाया
था।
हाल
ही
में
ब्रिटेन
के
किंग
चार्ल्स
तृतीय
के
राज्याभिषेक
समारोह
में
भी
इसका
प्रयोग
किया
गया
था।
मिस्र
में
भी
राजदंड
को
राजा
की
शक्तियों
का
केंद्र
माना
जाता
था।
इसे
वहां
वाज
नाम
दिया
गया
था।
मेसोपोटामिया
में
राजा
के
हाथ
में
रहने
वाला
गिदरु
ही
राजदंड
था।
इसके
अलावा
रोमन
राजाओं
के
हाथ
में
भी
राजदंड
थमाया
जाता
था।
खास
बात
यह
है
कि
रोमन
साम्राज्य
में
महत्पूर्ण
पदों
पर
रहने
वाले
लोगों
को
भी
राजदंड
दिया
जाता
था,
जो
उनकी
अलग-अलग
शक्ति
दर्शाता
था।
राजदंड
की
बनावट
आमतौर
पर
राजदंड
का
आकार
और
बनावट
अलग-अलग
रहती
है।
फिलहाल
जिसे
संसद
में
स्थापित
किया
जाएगा
वह
राजदंड
या
सेंगोल
चांदी
से
निर्मित
है,
जिसपर
सोने
की
परत
है।
शीर्ष
पर
नंदी
विराजमान
है।
हिन्दू
धर्म
के
अनुसार
नंदी
भगवान
शंकर
के
वाहन
है
और
उनसे
मांगी
हुयी
सारी
मनोकामना
पूर्ण
होती
है।
सेंगोल
तमिल
शब्द
‘सेम्मई’
से
लिया
गया
है,
जिसका
अर्थ
है
‘नीतिपरायणता’।
यह
भी
माना
जाता
है
‘सेंगोल’
शब्द
संस्कृत
के
‘संकु’
(शंख)
से
बना
हो
सकता
है।
सनातन
धर्म
में
शंख
को
बहुत
ही
पवित्र
माना
जाता
है।
मंदिरों
और
घरों
में
आरती
के
समय
शंख
का
प्रयोग
आज
भी
किया
जाता
है।
Sengol
in
Parliament:
राजदंड
तो
स्थापित
हो
रहा
है,
लेकिन
‘राजा’
को
निमंत्रण
क्यों
नहीं?
English summary
parliament Sengol or Rajdand symbol of transfer of power since the Mahabharata