Success Story: ‘मेरे दोनों हाथ और एक पैर कट गए,’ कंधों पर बांध ली कलम और लिखी हार न मानने की कहानी!

नई दिल्‍ली: जिंदगी की जंग में जीत सिर्फ उसी की होती है जो चुनौतियों का सामना करता है। रोशन नागर (Roshan Nagar Success Story) इसकी जीती जागती मिसाल हैं। रोशन ने बचपन में ही एक हादसे में दोनों हाथ और एक पैर गंवा दिए थे। छोटी सी उम्र में हुए इस हादसे ने उन्हें अंदर से हिलाकर रख दिया था। हालांकि, रोशन ने हिम्मत नहीं हारी। हर चुनौती का डटकर सामना किया। हादसे से उबरकर रोशन ने अपनी पढ़ाई फिर से शुरू की। अपने कंधों पर कलम बांधकर लिखना सीखा। आज रोशन कई लोगों को ट्रेनिंग और मदद मुहैया कराते हैं। उनकी कहानी लाखों-लाख लोगों को प्रेरित करती है।

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रोशन नागर बचपन में हम में से ज्‍यादा लोगों की तरह ही थे। हंसमुख और शरारती। एक दिन वह अपने घर की छत पर बैठे थे। अचानक नीले रंग की एक पतंग उनके पास से गुजरी। उन्‍हें पतंगों का बहुत शौक था। उसे पकड़ने से वह खुद को रोक नहीं पाए। एक बांस की छड़ी उठाई। लेकिन, दुर्भाग्य से वह छोटी पड़ गई। तभी उन्‍होंने पास में लोहे की रॉड देखी और उसे उठा लिया। जिस पल उन्‍होंने इसे उठाया, यह घर से गुजरने वाले 36 केवी हाई-टेंशन वायर के संपर्क में आ गई। एक सेकेंड में वह जमीन पर धराशायी हो गए।

होश आने पर अस्‍पताल के ब‍िस्‍तर पर पाया
रोशन को जब होश आया तो उन्‍होंने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया। बिजली के झटके ने उनकी ब्‍लड वेसेल्‍स को नष्ट कर दिया था। डॉक्टरों ने अगले दो दिनों तक रक्‍त वाहिकाओं में खून की सप्‍लाई शुरू करने की कोशिश की। लेकिन, नाकाम रहे। रोशन की जिंदगी बचाने के लिए डॉक्‍टरों के पास उनके दोनों हाथ और एक पैर काटने के अलावा और कोई चारा नहीं था। इसने उन्‍हें जीवनभर के लिए दो हाथ और एक पैर के बिना छोड़ दिया।

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इसके बाद भी डॉक्टरों को यकीन नहीं था कि वह बच पाएंगे। हालांकि, धीरे-धीरे रोशन में सुधार दिखने लगा। फिर उन्‍हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई। उन्‍होंने सपने में नहीं सोचा था कि वह इस तरह घर लौटेंगे। अगले छह महीनों तक उनके घावों का घर पर इलाज हुआ। जब उनके घावों पर कोई मरहम लगाया जाता था तो वह इतनी जोर से चिल्लाते थे कि परिवार वालों को ही नहीं बल्कि पूरे मोहल्ले को पता चल जाता था। ड्रेसिंग में बहुत ज्‍यादा दर्द होता था।

कंधों पर कलम बांध ल‍िखना सीखा
हालांकि, यह केवल शारीरिक घाव का हिस्सा था। असली चुनौतियां और संघर्ष अभी बाकी थे। एक बार किसी ने उनसे पूछा था, ‘अब तुम्हें पूरी जिंदगी ऐसे ही रहना है, अब तुम क्या करोगे?’ इस पर उन्‍होंने विचार किया। इस बीच उनके एक दोस्‍त ने सुझाव दिया कि वह बचे हुए चार इंच के बाजू में कलम पकड़कर लिखना शुरू करें।

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उन्‍हें यह आइडिया पसंद आया। उन्‍होंने प्रैक्टिस शुरू कर दी। शुरू में वह पांच मिनट में थक जाते थे। लेकिन, बाद में ऐसा भी समय आया जब वह तीन घंटे तक लिखने लगे। आमतौर पर लोग जीवन में एक बार लिखना सीखते हैं। एक बार चलना सीखते हैं। लेकिन, उन्‍होंने तीन-तीन बार लिखना सीखा और दो बार चलना सीखा। रोशन ने अपनी 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा बिना किसी मदद के पास की। यह उनके लिए बड़ी उपलब्‍ध‍ि थी।

ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद उन्‍हें अपने करियर की चिंता सताने लगी। उनके दिमाग में सबसे पहली बात ‘शारीरिक रूप से विकलांग’ श्रेणी के तहत सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने की आई। लेकिन, दुर्भाग्य से उनकी अक्षमता के स्तर के कारण उन्‍हें अपात्र घोषित कर दिया गया। लेकिन, वह रुके नहीं। लिहाजा, प्राइवेट सेक्‍टर में काम करने लगे। हालांकि, थोड़े समय बाद उन्‍होंने नौकरी छोड़ दी।

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अपनी अलग पहचान बनाई
किसी दूसरे की मदद की जरूरत न पड़े, इसके लिए मल-मूत्र त्‍यागने पर भी कंट्रोल करना सीखा। वह 5-6 घंटे तक इसे रोक लेते हैं। फिर उन्‍हें इलेक्ट्रॉनिक हाथों की जरूरत महसूस हुई। लेकिन, इनकी कीमत करीब 13 लाख रुपये थी। रोशन ने चैरिटेबल ट्रस्टों और संगठनों से मदद मांगकर पैसा जुटाना शुरू किया। लेकिन, पर्याप्त फंड नहीं जुटा सके। अंत में राजस्थान के एक एनजीओ ने उनकी मदद की। उसने पूरी राशि दान कर दी। इलेक्ट्रॉनिक हाथ लगने के बाद रोशन ने अपना निजी संस्थान शुरू किया। वहां वह युवाओं को अलग-अलग सॉफ्टवेयर प्रोग्राम पढ़ाने लगे। यह भी सुनिश्चित किया कि युवाओं को भविष्य में नौकरी के आवश्यक मौके मिलें। फिर उन्‍हें बड़ौदा राजस्थान क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में सहायक प्रबंधक के रूप में नौकरी मिली। इसके अलावा वह एक सफल लेखक और प्रेरक वक्ता भी बन गए। राजस्थान सरकार और कई अन्य संस्थाओं से उन्‍हें प्रेरक कामों के लिए सम्मानित किया जा चुका है।

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