UP News: जब योगी आदित्‍यनाथ पर तंज कसने के चक्‍कर में दिनकर की कविता पढ़ते समय फंस गए Akhilesh Yadav

लखनऊ: सीएम योगी (Yogi Adityanath) ने विधानसभा में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की जातीय जनगणना, रामचरित मानस विवाद को एक साथ समेटते हुए एक कविता पढ़ी थी। योगी ने 25 फरवरी को रामधारी सिंह दिनकर की कव‍िता रश्मिरथी की कुछ लाइनों का जिक्र किया था। मंगलवार को अखिलेश यादव ने दिनकर की ही कुछ लाइनों के जरिए जवाब देने की कोशिश की। लेकिन उनकी यह कोशिश बहुत प्रभावी नहीं हो पाई। कविता पढ़ने की कोशिश में अख‍िलेश कई जगह अटके, कुछ भटके। जब विधायक मुस्‍कुराने लगे तो खुद अखिलेश भी हंसकर बोले, पढ़ने में परेशानी इसलिए हो रही है क्‍योंक‍ि आज ही यह किताब खरीदी है।

उन्‍होंने खुद को फिर से संभाला, जैसे-तैसे कविता पढ़ी:

Vidhansabha: जाति पर नहीं सुना पा रहे थे कविता, Akhilesh Yadav ने कहा- पढ़ने नहीं आ रहा है क्योंकि…

द्वन्द्व-युद्ध के लिए पार्थ को फिर उसने ललकारा,
अर्जुन को चुप ही रहने का गुरु ने किया इशारा।
कृपाचार्य ने कहा- ‘सुनो हे वीर युवक अनजान’
भरत-वंश-अवतंस पाण्डु की अर्जुन है संतान।

‘क्षत्रिय है, यह राजपुत्र है, यों ही नहीं लड़ेगा,
जिस-तिस से हाथापाई में कैसे कूद पड़ेगा?
अर्जुन से लड़ना हो तो मत गहो सभा में मौन,
नाम-धाम कुछ कहो, बताओ कि तुम जाति हो कौन?’

‘जाति! हाय री जाति !’ कर्ण का हृदय क्षोभ से डोला,
कुपित सूर्य की ओर देख वह वीर क्रोध से बोला
‘जाति-जाति रटते, जिनकी पूँजी केवल पाषंड,
मैं क्या जानूँ जाति ? जाति हैं ये मेरे भुजदंड।

‘ऊपर सिर पर कनक-छत्र, भीतर काले-के-काले,
शरमाते हैं नहीं जगत् में जाति पूछनेवाले।
सूत्रपुत्र हूँ मैं, लेकिन थे पिता पार्थ के कौन?
साहस हो तो कहो, ग्लानि से रह जाओ मत मौन।

‘मस्तक ऊँचा किये, जाति का नाम लिये चलते हो,
पर, अधर्ममय शोषण के बल से सुख में पलते हो।
अधम जातियों से थर-थर काँपते तुम्हारे प्राण,
छल से माँग लिया करते हो अंगूठे का दान।

अखिलेश ने कहा कि प‍िछले 5 लाख साल से यह अन्‍याय चलता आ रहा है। इसके बाद अखिलेश ने भावुक होकर पूछा, बताइए ऐसा कभी होता है कि कोई घर से चला जाए तो मकान गंगाजल से धुलवाया जाए। साल 2017 में जब अखिलेश के बाद योगी आदित्‍यनाथ सीएम हाउस में रहने आए तो खबरें उड़ी थीं कि उन्‍होंने सीएम हाउस को गंगाजल से धुलवाया था।

इससे पहले सीएम योगी ने जातीय जनगणना और रामचरित मानस में ‘शूद्र’ विवाद पर दिनकर की रश्मिरथी की ये लाइनें पढ़ी थीं: मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का,धनुष छोड़ कर और गोत्र क्या होता है रणधीरों का,पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर,’जाति-जाति’ का शोर मचाते केवल कायर क्रूर।

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