World Sparrow Day 2023: दिल्ली में गौरैया की बढ़ने लगी है संख्या, संरक्षण में शीला दीक्षित की बड़ी भूमिका

World Sparrow Day 2023: राजधानी दिल्ली के पर्यावरण प्रेमी और पक्षी प्रेमियों के लिए अच्छी खबर है। घरेलू गौरैया की संख्या बढ़ने लगी है। संरक्षण की कोशिशें काम कर रही हैं।

India

oi-Anjan Kumar Chaudhary

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World
Sparrow
Day
2023:

करीब
एक
दशक
पहले
राजधानी
दिल्ली
से
गौरैया
लगभग
खत्म
ही
हो
गई
थी।
लेकिन,
तब
की
मुख्यमंत्री
शीला
दीक्षित
ने
एक
दूर्दर्शी
फैसला
किया
और
शायद
यही
वजह
है
कि
अब
राजधानी
में
गौरैया
फिर
से
घरों
में
नजर
आने
लगी
है।
यह
स्थिति
दिल्ली
से
सटे
बाकी
एनसीआर
शहरों
में
भी
देखी
जा
रही
है।
सोमवार
को
इस
साल
का
विश्व
गौरैया
दिवस
है,
इसलिए
यह
जानना
उचित
है
कि
शीला
दीक्षित
ने
जो
कदम
उठाए
थे,
उसमें
कितनी
सफलता
मिली
है।
यही
नहीं
विश्व
गौरैया
दिवस
के
भी
13
साल
पूरे
हो
रहे
हैं,
इस
लिहाज
से
भी
इसकी
उपलब्धि
पर
चर्चा
आवश्यक
है।

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दिल्ली
में
गौरैया
की
घर
वापसी

कभी
हर
घर
के
आसपास
नजर
आने
वाली
गौरैया
2012
के
आसपास
से
राजधानी
दिल्ली
के
शहरी
क्षेत्रों
से
लगभग
विलुप्त
ही
हो
गई
थी।
तब
की
परिस्थितियों
को
देखते
हुए
तत्कालीन
मुख्यमंत्री
शीला
दीक्षित
की
सरकार
ने
इसे
प्रदेश
का
राज्य
पक्षी
घोषित
कर
दिया
था
और
इसके
संरक्षण
के
लिए
कई
तरह
के
उपाय
अपनाए
जाने
लगे
थे।
पूर्व
सीएम
शीला
दीक्षित
खुद
भी
बड़ी
पक्षी
प्रेमी
थीं
और
उनके
कार्यकाल
में
शुरू
हुए
अभियान
के
11
वर्षों
बाद
राजधानी
दिल्ली
में
एक
बार
फिर
से
गौरैयों
की
चहकने
की
आवाजें
सुनाई
पड़ने
लगी
हैं।

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दिल्ली
के
इन
क्षेत्रों
में
दिख
रही
है
घरेलू
गौरैया

हालांकि,
दिल्ली
में
गौरैया
की
संख्या
बढ़ने
में
दो
राय
नहीं
है,
लेकिन
विश्व
गौरैया
दिवस
की
पूर्व
संध्या
पर
विशेषज्ञों
ने
कहा
है
कि
अभी
भी
सफर
लंबा
है
और
अत्याधुनिक
शहरी
व्यवस्था
में
इसे
अभी
कई
सारी
बाधाओं
से
गुजरना
है।
जेएनयू
के
स्कूल
ऑफ
लाइफ
साइंसेज
के
रिटायर्ड
जीव
विज्ञानी
सूर्य
प्रकाश
ने
न्यूज
एजेंसी
पीटीआई
को
बताया
है,
‘2012
से
गौरैया
की
संख्या
में
बहुत
ज्यादा
सुधार
हुआ
है,
विशेष
रूप
से
लोगों
की
भागीदारी
और
जागरूकता
बढ़ने
के
कारण।
हालांकि,
आधुनिक
लाइफस्टाइल
और
इंफ्रास्ट्रक्चर
घरेलू
गौरैया
के
लायक
नहीं
हैं।
इसलिए,
यह
पुरानी
दिल्ली,
जेएनयू
कैंपस
और
जंगलों
में
ही
दिखाई
पड़ती
हैं।’

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शहरीकरण
ने
गौरैयों
को
बेघर
किया

गौरैयों
के
गायब
होने
की
महत्वपूर्ण
वजहों
में
इमारतों
में
बालकनी
और
खिड़कियों
के
गायब
होते
जाने,
उनके
घोंसलों
के
लिए
सुराखों
की
कमी,
कीड़े
मारने
वाली
कीटनाशकों
का
प्रयोग
बढ़ना
और
स्थानीय
पौधों
की
कमी
आदि
शामिल
हैं।
सूर्य
प्रकाश
के
मुताबिक
तो
‘यह
सामान्य
मैनों
और
घरेलू
कबूतरों
की
आबादी
में
बढ़ोतरी
की
वजह
से
भी
हुआ
है,
क्योंकि
इन्होंने
गौरैयों
के
सभी
घोंसलों
वाली
जगहों
और
दाना
चुगने
वाली
जगहों
पर
कब्जा
कर
लिया
है।’

स्टेट
ऑफ
इंडियाज
बर्ड्स
2020
की
रिपोर्ट
में
घरेलू
गौरैया
को
‘कम
चिंता’
वाली
श्रेणी
में
रखा
गया
था।
तर्क
ये
था
कि
बड़े
शहरों
में
भले
ही
इनकी
आबादी
घटी
है,
‘कुल
मिलाकर
यह
स्थिर
है।’

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पूरा
मामला?


गौरैया
इंसानों
के
बिना
नहीं
रह
सकती-
एक्सपर्ट

इस
बीच
नेचर
फॉरेस्ट
सोसाइटी
के
मोहम्मद
दिलावर
का
कहना
है
कि
गौरैया
के
संरक्षण
के
लिए
मानवीय
दखल
जरूरी
है।
2010
से
इन्होंने
ही
20
मार्च
को
विश्व
गौरैया
दिवस
मनाने
की
परंपरा
शुरू
की
थी।
उन्होंने
कहा
है,
‘गौरैया
इंसानों
के
बिना
नहीं
रह
सकती,
उनके
घोंसले
और
दाने
मानव
और
उनके
लाइफस्टाइल
पर
निर्भर
है।
यह
भी
समझना
जरूरी
है
कि
सारी
चीजें
कैसे
जुड़ी
हुई
हैं।
स्थानीय
पौधों
की
कमी
की
वजह
से
कीड़ों
की
संख्या
में
गिरावट
आई
है,
जो
गौरैया
के
बच्चों
के
लिए
पहले
आहार
की
तरह
हैं।’
दिलावर
और
उनका
संगठन
इन
सबके
प्रभाव
के
बारे
में
जागरूकता
फैला
रहे
हैं
और
लोगों
को
देशी
प्रजातियों
के
पौधे
लगाने
के
लिए
प्रेरित
कर
रहे
हैं।
साथ
ही
साथ
कीटनाशकों
के
इस्तेमाल
नहीं
करने
और
अपने
घरों
के
बाहर
उनके
लिए
नेस्ट
बॉक्स
और
दाने
का
इंतजाम
करने
के
लिए
कह
रहे
हैं।

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‘गौरैया
ग्राम’
में
बढ़
रही
है
आबादी

इसी
तरह
के
उपायों
ने
बॉम्बे
नैचुरल
हिस्ट्री
सोसाइटी
और
दिल्ली
सरकार
को
गौरैया
ग्राम
बनाने
में
सहायता
की
है,
जो
कि
यमुना
नदी
के
किनारे
है।
पूर्वी
दिल्ली
में
गढ़ी
मांडू
जंगल
के
अंदर
शुरू
हुए
इस
पायलट
प्रोजेक्ट
में
बड़ी
संख्या
में
घरेलू
गौरैया
जमा
हुई
हैं,
जो
एक
खास
‘इंसेक्ट
होटल’
में
दाना
चुगती
हैं।
बॉम्बे
नैचुरल
हिस्ट्री
सोसाइटी
के
सोहैल
मदान
ने
कहा,
‘हमने
गौरैयों
को
उनके
खाने
और
घोंसला
बनाने
के
लिए
सही
तरह
के
स्थानीय
पौधे
उपलब्ध
कराकर
उनके
लिए
एक
सुरक्षित
जगह
बनाई
है।
हमनें
गौरैयों
के
लिए
आर्टिफिशियल
नेस्टबॉक्स
भी
लगाए
हैं।
सबसे
बड़ी
बात
की
हमने
इंसेक्ट
होटल
तैयार
किए
हैं,
जिसमें
विभिन्न
प्रकार
के
कीट-पतंग
हैं,
जो
गौरैयों
की
स्वस्थ
आबादी
बनाए
रखने
में
बढ़ी
भूमिका
निभाती
हैं।’

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दिल्ली
के
बाकी
इलाकों
में
भी
शुरू
होगा
प्रोजेक्ट

इस
संगठन
की
ओर
से
ज्वार,
बाजरा
और
मूंज
की
स्थानीय
घासें
भी
उगाई
गई
हैं
और
जंगली
करोंदा
जैसी
झाड़ियां
भी
तैयार
की
गई
हैं,
जो
गौरैयों
के
अनुकूल
वातावरण
पैदा
करती
हैं।
इस
प्रोजेक्ट
में
बड़ी
संख्या
में
स्थानीय
लोगों
को
भी
शामिल
किया
गया
है।
पहले
यहां
एक
भी
गौरैया
नहीं
थी,
लेकिन
अब
वह
काफी
तादाद
में
हैं।
हालांकि,
औपचारिक
रूप
से
इनकी
गिनती
नहीं
की
गई
है।
मदान
के
मुताबिक
यह
पायलट
प्रोजेक्ट
है
और
अच्छा
रहने
पर
इसे
दूसरे
वन्य
क्षेत्रों
में
भी
अपनाया
जाएगा।
दिल्ली
के
आम
निवासी
भी
अपने
स्तर
पर
इस
अभियान
में
जुटे
हुए
हैं
और
उन्हें
सफलता
भी
मिल
रही
है।

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आम
लोग
भी
दे
रहे
हैं
योगदान

न्यू
फ्रेंड्स
कॉलोनी
में
रहने
वाली
निनी
तनेजा
ने
करीब
8
महीने
पहले
अपनी
बालकनी
में
एक
नेस्टबॉक्स
और
फीडर
लगाया
था।
काफी
समय
तक
धैर्य
रखने
के
बाद
उनका
समर्पण
काम
कर
गया
और
जब
गौरैया
आने
लगी
तो
फिर
खुशी
का
ठिकाना
नहीं
रहा।
तनेजा
पक्षी
प्रेमी
होने
के
साथ-साथ
चित्रकार
भी
हैं
और
वह
दूसरों
को
भी
अपनी
बालकनी
में
नेस्टबॉक्स
और
फीडर
डालने
के
लिए
प्रोत्साहित
कर
रही
हैं।
(तस्वीरें-
फाइल)

English summary

Sparrow population has started increasing in Delhi, Sheila Dixit started the campaign. Awareness has also arisen among people and this bird is reaching homes

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